उत्तर प्रदेश के ग्रामीण क्षेत्रों में पेयजल की उपलब्धता एवं पेयजल योजनाओं की धारणीयता फतेहपुर जनपद के विशेष सन्दर्भ में | Uttar Pradesh Ke Gramin Kshetro Me Peyajal Ki Upalabdhata Evm Yojanaon Ki Dharaniyata Fatehapur Janapad Ke Vishesh Sandarbh Men

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Uttar Pradesh Ke Gramin Kshetro Me Peyajal Ki Upalabdhata Evm Yojanaon Ki Dharaniyata Fatehapur Janapad Ke Vishesh Sandarbh Men  by अन्विता श्रीवास्तव - Anvita Shrivastav

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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दर के हिसाब से पानी की उपलब्धता 69 हजार धन मीटर थी। जो अब घट कर करीब दो हजार घन मीटर रह गयी है। और जिस बेरहमी से भूमि के नीचे के जल का दोहन नलकूपो से किया जा रहा है उससे यह तय हो जाता है। अगले 20 साल बाद जल की उपलब्धता घट कर बामुश्किल सोलह सौ धन मीटर रह जाएगी ।* पृथ्वी की उत्पत्ति के विषय मे वैज्ञानिकों की यह मान्यता है कि 46 000 लाख वर्ष पहले पृथ्वी बनी तथा अब से लगभग 5700 लाख वर्ष पूर्व पृथ्वी पर जल की उत्पत्ति हुई सयुक्त राष्ट्र सध की रिपोर्ट के अनुसार यदि विश्व भर के पानी को आधा गैलन मान लिया जाए तो उसमे ताजा पानी आधे चम्मच भर से ज्यादा नही होगा, और धरती की ऊपरी सतह पर कुल जितना पानी है वह तो सिर्फ एक बूद भर ही है बाकी सब भूमिगत है। भारत मे तो कुल उपलब्ध पानी का 70 प्रतिशत पानी प्रदूषित है। पानी जीवनदायी है। मानव के लिए यह प्रत्येक दृष्टी से उसके जीवन का आधार है। ग्रामीण जल आपूर्ति कार्यक्रम मे प्रतिदिन प्रत्येक व्यक्ति को 40 लीटर स्वच्छ पानी ओर रेगिस्तानी क्षेत्रो मे मवेशियो के लिए 30 लीटर अतिरिक्त जल प्रतिदिन उपलब्ध कराने का मानदण्ड निर्धारित किया गया हे। अनुमान है कि भारत मे घरेलू उपयोग ओर मवेशियो के लिए लगभग 25 अरब घनमीटर पानी की आवश्यकता है |! हमारे देश मे जलवायु विषयक विलक्षण विविधता है जिसके तहत वार्षिक वृष्टिपात का 60 प्रतिशत हिस्सा ओर उससे प्राप्त सतह-जल मानसून की अल्पावधि तक सीमित रहता हे यह अवधि आमतौर पर 100 दिन से भी कम होती है। अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रो की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए जल ससाधनो का दोहन देश के आर्थिक विकास ओर कल्याण का आधार है। जल ससाधनो का विकास अनिवार्य वित्तीय ढाचे का हिस्सा है अत सार्वजनिक निवेश कार्यक्रमो के जरिए इसका समर्थन किया जाना चाहिए । लोगो की आर्थिक खुशहाली के लिए अगर देश के जल ससाधनो का समुचित दोहन किया जाए तो वे अपर्याप्त नहीं है। लगभग 40 खरब धन मीटर (बी०सी०एम०) वार्षिक वर्षा से नदी प्रणाली के औसत जल प्रवाह मे 18 खरब 69 अरब धन मीटर (बीग्सी०एम०) जल सतह पर पडता है लेकिन इस सतह जल मे से बहुत कम मात्रा ही उपयोग मे आ पाती है इसका कारण अधिकाश जल का ? स्रोत-कुरुक्षेत्र, फरवरी 1998, पेज-2 0 स्रोत-योजना, 15 नवम्बर, 1993, पेज 17 (7)




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