काव्या लंकार सूत्राणि | Kavya Lankar Sutrani

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Kavya Lankar Sutrani by बेचन झा - Bechan Jha

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about बेचन झा - Bechan Jha

Add Infomation AboutBechan Jha

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
( ९) इन ६ अछकारों की कल्पना की । यद्यपि इनमें अनुप्रास का स्वरूप दण्डों के काव्यादह् में ही स्पष्ट किया जा चुका था, किन्तु दण्डी ने अनुप्रास, को अछकारो ঈ गिनाया नहीं था। अलकारों मे उसकी गणना का श्रेय भामह को ही है। इस प्रकार भामह तक अलवारो की सख्या ४३ हो चुकी थी। यद्यपि भाभह स्वय ने इनमे से केवल ३८ अलकारो को ही अलकार माना *है शेष-- १ मावृत्ति २ हेतु ३ पुम केश ५ चित्र इन पाँच अलकारो को उनने अलकार स्वीकार नही क्रिया । इनमे से आधृत्ति मौर चित्र पर वे मौन हैं। कितु हेतु सूक्षष और छेश का तो उनने खण्डना भी किया है। মান ने केवल ३१ अलकार ही स्वीकार किए जिनमे ३ उतके स्वकल्पित है और शेष २८ प्राचीन | इनका विवरण--- ३ प्राचीन- ( के ) अमान्य-- दण्डी के--. स्वभावोक्ति, आवृत्ति, हेतु, सृक्ष्म, लेश, रसव॒द्‌, ्रेय, ऊजस्वि, पर्यायोक्ति, उदात्त, ~ भाविक, मासी तयाचित्र १३ भामह्‌ के-- उपमारूपक तया उत्रेक्षावयव २ (ख ) मान्य- दण्डी के-- उपमा, समासोक्ति, अप्रस्तुतप्रशसा, अपहुति, रूपक, दलेप, उत्प्रेक्षा, अति- शयोक्ति, विशेध, विभावना, परिवृत्ति, क्रम, ,दीपक, निदर्णना, अर्थातरन्यास, हु ¦ व्यतिरेक, विशेषोक्ति, व्याजस्तुति, तुत्य~ योगिता, आल्षिप, , सहोक्ति, समाहित, समष्टि तथा यमक । २४ भामह के-- सन्देह, भन षय, बनुप्रा्, उपमेयोपमा ४ २ स्वकल्पिति-- _ १ त्रोक्ति २ भ्याजोवित ३ प्रतिवस्तूपमा ३ इनम से प्रतिवस्तूपमा का निरूपण दण्डी और মাম में भी मिलता है चिन्नु स्यतत्र अल्कारकेख्पमे नही! स्वतत्र मरकारकं रूप मे इसकी कल्पना आँठवी शती वी ही देन है, क्योकि इसे उद्दट ने भी स्वतान्न अलवर स्वीकार किया है । वामन मे उक्त अलकारों मे शब्दाल्कार माना केवल (१) यमक्गौर (२) अनुप्रास को | शेष सबको उनने अर्थालकार प्रकरण मे रखा । १ देतु' सूकष्मम्थ लेगइच नालकारतया मतत 4 समुदायाभिधानाच्च वक़ोवत्यनभिधानत ॥! काव्याठकार -




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now