श्री भागवत दर्शन भागवती कथा भाग - 41 | Shri Bhagawat Darshan Bhagavati Katha Bhag - 41
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
194
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)(१५)
करता है, तो कर नहीं मैं इस लड़के को मार डालूँगा पीछे तू“
इसकी तेरहीं तो करेगा ही । ऐसे ही मेरे लिए कुछ कर दे । मुझे -
इस योनि में बड़ा कप्ट है।” ;
फिर इसके पश्चात् उन प्रेतराज ने श्रपना सय पृत्तान्त
बताया कि मैं पूर्व जन्म में बड़ा पंडित था प्रयाग से ८ - १०
कोश पर सोनापुर नामक मेरा गाँव था, हम दो भाई थे, मेरा
नाम अरुणदेव शाली चौर मेरे भाई का नाम शालिगराम
था। मेर दो लड़के और एक लड़की थी। एक लड़का तो
तू ( सेवफराम ) है। दूसरा लड़का (नरबर के याज्षिकजी का
बड़ा लड़का सेवकराम की बह्दिन का जेठ ) श्रमृत लाल था !
ओर लड़की सेवकराम की बहिन है। मैंने बहुत धन पैदा
किया, किन्तु कुछ भी सुकृत मुझसे नहीं हो सका तब मेरा
जन्म मैंनपुरी के भदान गाँव में हुआ। 'मेरे पास धन तो
चहुत था, किन्तु उससे मैंने कुछ पुण्य-कर्म नहीं किया । वहाँ मेरी
अकाल म॒त्यु हुई और मुझे यह प्रेत योनि प्राप्त हुई। इसमें में
जलता रहता हूँ। अपने आप मैं कोई शुभ कर्म नहीं कर सकता ।
मेरे ऊपर घड़ा शासन रहता'है। प्यास लगती है पानी नहीं
पी सकता। हम परिवार 'बालों से ही आशा रखते हैं, थे
कुछ हमारे लिये पुण्य करें तो मिल जाय, हमारा रूप
बड़ा भयङ्कर द॑ हम दूसरों का अनिष्ट तो कर ही सकते हैं
कब से कह रहा हू मेरे. लिये भागवत सप्ताह करा दो।
इससे मेरा उद्धार हो जायगा। तुम' खयं नहीं कया सकते,
तो मेरे साथ प्रयाग चलो | मैं अपने सप्ताह का सब प्रबन्ध करा
লা... 5 हजार ` 4 ২
-' -उस लड़के सेवकराम- नेःमुमसे ' कहा--“सो, महाराज
वे प्रेवगराज ही-मुके- यहाँ आपके पास ले आये हैं (हमारे
५ डिक ~ =
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