दद्रु - चिकित्सा | Dardu-chikitsa

Dardu-chikitsa by एम. आर. लम्बा - M. R. Lamba

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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थु हि... प्झ्ल्ः जाता है। इसलिये सबसे उत्तम उपाय तो यद्द है कि फिसी दूसरे के कपड़ों को कदापि अपने शरीर पर न घारण करें, और यदि ऐसा प्रसद्ध आ ही जाय, तो बहुत दी सावधानी से काम में लाएँ । दूसरों की धघोती, लैंगोट, टोपी, कुरते ादि पहन लेने की जिन्हें आदत होती है, उन्हें प्राय' दाद हो जाया करता दै;; क्योंकि कभी- न-कभी तो 'मसावघानी से दादवालों के कपड़े पहन दी लिये जाते हैं। वदन पॉंछने के 'मैंगोछे, ट्वाल, रूमाल बगैर” कभी दूसरे मनुष्य के अपने काम में नद्दीं लाने चाहिएँ । इससे दाद दी नदी , चटिक अनेक रोगों से रक्ता होती दै । (वख्र ढीछे पहनने चाहिएँ । तट्न-चुस्त कपड़े भी ढाद की बीमारी उत्पन्न करते हैं [तह कपड़ों से पसीना ज्यादा आता है. श्गीर पसीना, मैल एवं कपड़े की गन्दगी दाद पैदा करते हैं । अतएव कण्ड़े सदैव इतने ढीछे पददनने चादिएँ कि शरीर में दवा अच्छी तरह लगती रदे । झाजफल फैशन वन गया है कि लोग 'छाव- श्यकता से कहीं ्धिक कपड़े पहनते हैं । 'ाप, लोगों को ध्यान- सूवेक देखेंगे तो चार-पाँच मनुष्यों के पदनने योग्य कपड़े एक ्यादमी के शरीर पर लदे पाएँगे । यद्द ठीक नद्दीं है । वख्र कम- से-कम उतने दी पहनने चाहिएँ, जितने--श्रीष्म; शीत और व्यों ऋतु के हानिकारक प्रभावों से शरीर की रक्षा कर सकें । गर्मी के सौसम में शरीर पर ४ । ५ वख्र लादकर निकलने की




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