विद्वत अभिनन्दन - ग्रन्थ | Vidvat Abhinandan - Granth

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Vidvat Abhinandan - Granth  by पं. लालबहादुर शास्त्री - Pt. Lalbahadur Shastri

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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अपनी बात विज्ञ पाठकों ! आज अ० भा० दि० जैन शास्त्रि परिषद्का पुष्य नं० १०० (एक सौ) आपकी सेवामें समर्पित है। शास्त्रि परिषदने जो दुढ निदचय किया साहित्य प्रकाशनका वह रानैः शनैः अपनी गतिसे भगे बढ रहा है। भगवान्‌ महावीर स्वामीके २५०० वें निर्वाण वर्षमें इस ग्रन्थका निर्णय किया था अब छपकर आपके हाथोमें है| स्वीकार करें । स्व०रा०सा० सेठ चाँदमल जी पांड्या भविष्यवक्ता थे, या समाजद्रष्टा थे क्या थे यह तो अनुभवी जानते हैं। मुझसे जब अनाईजामवाद (पुरलिया)में बेदी प्रतिष्ठाके शुभावसरपर सन्‌ १९७३ ई० में मिक्ते और सराक जातिके उत्थानके विषयमें अपने सहयोग बाबत वचन दिया तब एक बात उन्होंने हमें अलग ले जाकर बडी गम्भीरतासे बताई । जिसे सुनकर हमने उस समय पूरी तरह विश्वास नहीं किया था, लेकिन समयने व उन व्यक्तियोकि कूटनीतिक कार्योने उनकी बात अक्षरः सत्य सिद्ध कर दी ओौर हम आज पाँख्याजीको भविष्यवक्ताके रूपमे माननेको तो तयार है ही, समाजद्रष्टाके सूपे भी मानने लगे ह । उन्होंने वर्तमान दिगम्बर मुनियो व आचार्योकी अवहेलनाकी चर्चा भी बड़े दुःखके साथ की थी और कहा था कि वह समय शीक्ष आनेवाला है जब बडे-बडे धनपति अपने पदका दुरुपयोग करेंगे, मुनिनिदापर उतरेंगे और उनकी आलोचना प्लेटफार्मोसे करेंगे तब समाजमें चेतना जागेगी और समाज अपने मार्गदर्शकोंको सही दिशामें पहचान सकेगी तब आचार्यपरम्पराकी रक्षा होगी । आज वह हमारे मध्य नही है, यदि होते तो दोनों भविष्यवाणियाँ सही उतर गई । उन्हें देखते सुनते | पर' ” जैन जनगणनाका कार्य जब स्व० जैनरत्न सेठ शीतलप्रसादजी मेरठने हमसे पूर्ण परामर्श करके अ० भाऽ जैन परिषद्को सौपा ओौर हमने कोई भी एतराज न किया तब भी रा० सा० सेठ चाँदमलूजीने कहा था कि बडी भूल की जो ऐसे हाथोंमें कार्य सौंपा जो उसे पूरा क्‍या आधा भी न कर सकेंगे । लेकिन परिषद्ने शीघ्र ही अ० भा० जैन जनगणना समितिका रूप धारण करके विशाल कमेटीका गठन किया और जो भी कार्य वह कर सकी किया पर हमारे किये तक वह न पहुँच सकी और उसे भी आधा सिद्ध करा दिया, यहाँ भी रा० सा० पाड्याजीका अनुमान सत्य निकला । विद्वानोंका सम्मान भ० महावीरका २५०० बें निर्वाण वर्षमें रंचमात्र ही सफल होगा क्योंकि जो निर्वाण कमेंटी अ० भारतीय बनी है उसका लक्ष्य विद्वानोंकी ओर नही है मात्र अपनी प्रशसाके लिए विद्वान दो-त्रार कमेटीरमे रखे है उन्हीको थोड़ा-ब हत सम्मान उपाध्याय श्रीमुनि विद्यानन्दजी करा देंगे बाकीका स्मरण भो नही होगा ! इस वाक्यसे हमे बहुत ॒वडी वेदना पैदा हई ओर हमारा लक्ष्य बन सया कि हम अपने विद्वानोका जीवन परिचय (विदत्‌ अभिनन्दन ग्रन्थ) ग्रन्थ अवश्य छपवावेंगे और उनका फिर स्थायी स्मरण समाजके सामने रखेंगे। यह दृढ़ता जब हमने रा०सा० सेठ चाँदमरूजी सा० के सामने रखी तो बह बहुत प्रसन्न हुए । बोले हमें विधवास है कि तुम अपनी प्रतिज्ञा निभाओगे ।” यदि ग्रन्थ बना तो छपवा हम देंगे चाहे कितना हो खर्च करथो न आबे ! पर, ध्यान रखना विद्वानोमें मेदमाव न करत।, किसी भी धाराके विद्वान हों परिचय सभी का छापना । हाँ, साथमें मुनिराजों, आथिकाओं, ब्रतियोंका भी परिचय छापना ताकि आनेवाली সপ হু সপ




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