जैनदर्शन में रत्नत्रय का स्वरूप | Jainadarshan Men Ratnatrya Ka Svarup
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लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
8 MB
कुल पष्ठ :
177
श्रेणी :
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No Information available about सुधासागर जी महाराज - Sudhasagar Ji Maharaj
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)129 उत्तमार्थ प्रतिक्रमण 129, सामायिक और प्रतिक्रमण में भेद 129, प्रतिक्रमण मय जीव 129,
्रतिक्रमण की विधि 130 प्रत्याख्यान 130, प्रत्याख्यान मे छह निक्षेप 130, नाम प्रत्याख्यान 130,
स्थापन प्रत्याख्यान 130, द्रव्य प्रत्याख्यान 130, कषे्रपरत्याख्यान 130, काल प्रत्याख्यान 131, भाव
प्रत्याख्यान 131, संभोग प्रत्याख्यान 131, उपधि प्रत्याख्यान 131, आहार प्रत्याख्यनि 131, योग
प्रत्याख्यान 131, सदभाव प्रत्याख्यान 131, शरीर प्रत्याख्यान 131 , सहाय प्रत्याख्यान 131, कपाय
प्रत्याख्यान 131, कायोत्सर्ग 132, कायोत्सर्ग का काल 132, कोयोत्सर्ग के चार भेद 132,
कोयोत्सर्ग करने वाले के स्थान मम्बन्धी दोष 132, अचेलकत्व 133 , अचेलता के अन्य गुण 133,
अस्नान 134, भूमि शयन 135, अदंत धावन 135, स्थिति भोजन 135, एक भक्त 136, तेरह
प्रकार का चारित्र 136 , गुप्ति 136, व्यवहार मनोगुप्ति 136 , निश्चय मनोगुप्ति 136, व्यवहार वचन
गुप्ति 136, निश्चय वचन गुप्ति 136, व्यवहार काय गुप्ति 136, निश्चय काय गुप्ति 136, साधु
के उत्तर गुण 136, तप 136, ब्राहय तप 136, अनसन 136, अवमोदर्यं 136 . वृत्ति परियंख्यान
137, रस परित्याग 137, विविक्त श्यूयासन 137, कायक्लेश 137, ब्राह्म तप के कथन का कारण
137, आभ्यन्तर तप 137 प्रायशिचित 137, आलोचना 137, प्रतिक्रमण 137, तदु भय 137, विवेक
137, व्युत्सगं 137, तप 137, केद् 137, परिहार 137, उप स्थापना 137. विनय 137, जान विनय
137, दर्शन विनय 138, चारित्र विनय 138, ओपचारिक विनय 13६, वेयावृत्य 138, वैयावृत्य
का महत्व 138. स्वाध्याय 139, वाचना 139, पृच्छना 139, अनुप्े्ा 139, आम्नाय 139, उपदेश
139, व्यत्सर्गं 139, आभ्यन्तरोपधि त्याग 139, वाहयोपधि- त्याग 139 .ध्यान 139, त्राईम परीषह
140, क्षुधा परिषृहजेय 140, तृषा परिषह जय 140, शीत परिषह जय 140, उष्ण परिषह जय
140, दंशमशक परिपह जय 140, नाग्नय परिषह जय 140, अरति परिषह जय 141, म्त्री परिप
जय 141, चर्या परिषह जय 141, निषद्य परिषह जय 141, शच्या परिषह जय 141, आक्रोश
परिषह जय 141, त्रध परिषह जय 141, याचना परिषह जय 141, अलाभ परिह जय 141, रोग
परिषह जय 141, तुर स्पर्शं परिषग जय 141, मल परिषह जय 142, सत्कार पुरम्कार परिष
जय 142 प्रज्ञा परिषह जय 142, अज्ञान परिषह जय 142, अदर्शन परिषग जय 142, अनुप्रे्षा 142,
अनित्यानुप्रेक्षा 142, अशरणानुप्रेश्ना 143 , संसारानुप्रेक्षा 143 , एकत्वानुप्रेश्ा 143 , अन्यत्यानुप्रेक्षा
143, अशुच्यानुपरेक्षा 143, आम्रवानुप्रेश्षा 143 , सब॑रानुप्रेक्षा 143 , निर्जगनुप्रेक्षा 143 , लोकानुप्रेक्षा
143, बोधि दुर्लभानुप्रेक्षा 143 , धर्मास्वाख्यातत्वानुप्रेक्षा 144 दशलक्षण धर्म 144 , उत्तम क्षमा 144 ,
उत्तम मार्दव 144. उनम आर्जव 14, उत्तम सत्य 14, नाम सत्य 145, रूप सत्य 145, स्थापना
सत्य 145, प्रतीत्य सत्य 145. संवृतनि मत्य 145, संयोजना सत्य 145, जनपद सत्य 145. देश सत्य
145, भाव सत्य 145 , समय सत्य 145, उत्तम शोच 145, उत्तम संयम 145. उनम तप 146, उनम
त्याग 146, उत्तम आकरिंचन्य 146, उत्तम ब्रह्मचर्य 146 चारित्र 146. सामायिक 146.
क्रेदोपस्थापना 146, परिहार विशुद्धि 16. सूक्ष्म साम्पराय 146, यथाख्यात 146, ममाचारी 146.
समाचारी के दस अद्ग 146 , साधु कौ दिनचर्या 147, दम कल्प 147, आचेलक्य 1448. ओददेशिक
का त्याग 148, शययाधर का त्याग 148, राजपिण्ड का ग्रहण न करना 148, कृतिकर्म 148 , ब्रत
148, ज्येष्ठता 148, प्रतिक्रमण 149, मास 149, पर्युष्णा 149, सम्यक्तवाचरण चार्त्रि ओर
संयमाचरण चारित्र 149, व्यवहारनव मुनि ओर श्रावक के लिङ्ग को मोक्षमार्ग मानता है निश्चय
नय नहीं 150. वन्दनीय कान 150. चारित्र से हीन ज्ञान ओर दर्शन 150, मुनि का युक्ताहार विहारत्व
150, उत्सर्ग मार्ग ओर अपवाद मार्ग 151, सल्लेखना 151, ब्राह्म सल्लेखना 151, अभ्यन्त
सल्लेखना 152.
বব বি
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