प्राचीन भारत में भौतिकवाद | Prachin Bharat Mein Bhautikwad

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Prachin Bharat Mein Bhautikwad by देवीप्रसाद चट्टोपाध्याय - Deviprasad Chattopadhyay

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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| प्राचीन भारत मे भौतिकवाद मसेन करने को बाध्य थे। लेकिन हमारे दक्ष मे एक युयों पुरानी किवदती अली भती है जिसके अनुसार, बौद्धो की अपनी तमाम शाब्दिक निन्दाके ब्रावज़ूद, स्वयं शंकर एक “प्रच्छूत्तन बौद्ध/ थे । हमारे लिए इस प्रदन में उल- मना जरूरी नहों कि क्थोकर और कब यहू कियदंती चल पड़ी, या कि इसमें कितेनी सैद्धांतिक सच्चाई है । किन्तु यह स्पष्ट है कि दार्शनिक दुष्टि से-- विशेषकर भौतिक जगत की वास्तविकता के प्रश्त के सम्बंध में---कहा जाय तो उनका मत, जो अदवैत वेदान्त कहलाता है, शायद ही नागार्जुन के शुन्य- बाद अथवा असंग-वसुबन्धु के विज्ञानवाद से भिन्न हो | दूसरे छाब्दों में, कंकर के मदूवैत वेदान्त के अनसार भी, प्रतिदिन अनुभव किये जाने बाले हस भौतिक अमत का कोई अस्तित्व नहीं है। इसकी सत्ता वैसी ही है जैसी स्वप्न में देखी गयी वस्तुओं की सत्ता गा रस्सी में सांप देखने, मृगमरीचिका में पानी देखने, आदि जैसी भ्रांतियों की होती है । जहां तक इसे सिद्ध करने की पद्धति की बात है, शंकर--बौदों से भिन्‍न , “-ताकिक युक्तियों के भमेले में नहीं पड़े । एकमात्र मुख्य प्रमाण जिसके बल पर वहू इसे सिद्ध करना चाहते थे शास्त्रोक्त बातें थीं। इनसे उनका तात्पये प्रथमत: उपनिषदों में कही गयी बातों से था । सच तो यह है कि उन्होंने दूसरों के दिमाग में यह बैठाने का भरपूर प्रयास किया कि समस्त उपनिषद एक ही. व) अर्थात उस दर्शन की जिसकी व्याख्या, शकर नं अदुवत वेदान्त के कूप मंकी दै । जहां तक युक्ति मौर तर्को को जुटाने की पद्धति की बात है, उन्होने इनके प्रति खुली षणा ही दर्शायी--सिवा एक मामले के : तकं की एक सीमित साथकता वहीं तक है जहां तक वह्‌ शास्तरो- क्त बातो को--उपनिषदों मे घोषित बातों को -युक्तिसंगत ठहूरनि को सहमत हता है । लेकिन जहां उसने स्वयं मे अपनी साथंकता का तनिक भी दावा किया, वहू वैध सीमा का उल्लंघन कर जाता है । इस प्रकार, जहां तक शास्त्रों के समर्थन की बात थी, इनके विपरीत जाने वाले किंसी भी मत को खण्डित करने की तकं को अनुमति थी । मेकिन इससे आगे तकं की को भूमिका नहीं षी । यही कारण है कि शंकर ने अपने वृहृद ग्रंथ का आरम्भ प्रमाणोमे (प्रमाणो; शब्द: “जानने के उपकरणों” के प्रचलित अर्थ में) एकदम अविश्वास की घोषणा के साय किया । वह श्रीहर्ष जेसे अपने परवर्ती अनुयात्रियों के लिए बाल की खाल निकालने वाले पंडिताऊपन से एक मुद्दे का समेन करने का काम छोड़ यये -इस मुहं का समथेन करने का काम कि सामान्यतः जिन अर्थो मे “प्रमाण को समा जाता है, दहन मे उसके लिए (यानी प्रमाणके लिए) कोई स्थान नहीं । प्रमाण के विरुद्ध श्रीहषं के तक -वितकं अण्डन-खण्ड- झाझ्य नामक ग्रंथ में मूर्त रूप धारण करते हैं । खब्डन-खण्ड-सखाह्य का शब्दक्ष: [1




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