जैन तीर्थयात्रा विवरण | Jain Tirthayatra Vivaran

Jain Tirthayatra Vivaran by अज्ञात - Unknown

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about अज्ञात - Unknown

Add Infomation AboutUnknown

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
( १३ ) भारतवषंके डक विभागक नियम्‌ । १. जो चिट्ठी चारों तरफसे बंद होती है उप्तके पढनेका किप्तीकी अधिकार नहीं है, ऐसी चिट्ठीका वनन १ तोछा तक हो तो उक्तका महसूछ भाधा आना लगता है तथा उससे अधिक अथीत्‌ १० ते तक एक आना र्गत है । बैरग चिट्ठीका उससे কনা ভাবা ই। २. पोष्ट कार्ड एक पेसेंमें मिछता है उसके एक तरफ तथा दूसरी तरफके आधे भागमें समाचार लिखना चाहिये। पता साफ लिखना चाहिये, इसी तरह सादे कार्ड को भी एक पेसेका टिकट लगाकर काममें छा सकते है। ३. बुक पैकिट-यह दोनों तरफसे खुछा रहता है. इसमें छपी हुईं पुस्तकें व छपनेके लिये हाथकी लिखी हुईं कापियों वगैरह भेजी जाती हैं इसका महसूल १० तेल तक आध आना लगता है. ४. वानगीकी वस्तु भी १० तोले तक आधे आनामें जाती है और फिर हर दस तोले पर आधे आना ज्यादा होता जाता है. ৭. पाप्तल-४ ० तेल़े तकके वननका ») आनेमें जाता है फिर हर ४० तोले या उसके हिस्सेपर ৮) आना अधिक होता जाता है, ये सव॒ अनरमिष्टई पार्सछ कहलाते है जो राष्ट कराना चदे वह =) का अधिक टिकट छगावे पासेछ कितने ही बजनका क्यों न हो । पारप वेर॑ंग कभी नहीं जाते | ६. वेल्यूपेबल ( बी. षी.) पारस, चिट्ठी, बुक पाकेंट वगैरह




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now