व्यापारिक सन्नियम | Vyaparik Sanniyam

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Vyaparik Sanniyam by वी॰ एन॰ अग्रवाल - V. N. Agrawal

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about वी॰ एन॰ अग्रवाल - V. N. Agrawal

Add Infomation AboutV. N. Agrawal

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
चामरिकदास्य कत सर्य ९ जिनके ध्यवहार य गुण, समय अथवा स्थान वदने पर नही वदरते 1 वह टर स्यान पर আব ह्रसमय्मं मेही घने रहते है! उदादट्रणार्थं याक्सीजनेके गुण भूतकाल में भी वही थे जो आज रह ओर भविष्य में भी वही रहुगं ॥ इसी प्रकार उच्चक्के गण भारत भें भी वही है जो अमरीवा में हैं। परन्तु नाभरिकशास्न की अध्ययन वस्तु है भनुष्य वा सामाजिक जीवन' ओर यह जीवन समय भर देश के अनुसार बदलता रहता है। घह कल তু मौर या, आन कु भौर है और आगे कुछ और होगा । वह भारत में एक प्रकार वा है खौर अमरीका मं दूसरी प्रकार वा। अत नागरिकज्ञास्त्र इसके विषय में ऐसे सिद्धान्त नहीं वना सकता ऊने कि भौतिकशास्त्र अपने विषयों के सम्दन्ध में बना सकता है। (२) विभिन्न दिधि-भौतिवश्यास्त्र अपने अध्ययन में ऐसी विधियों को काम में लाते हैं जिनसे किः उनके निदचयो में भूल की सात्रा नही के वरावर हो 1 वह प्रयोगशाला में उन विपयो के व्यवहारों अथवा गुणो का अध्ययन अपने अनुक्छ पैदा वी हुई दक्षाओं में कर सदते ই অনল সমীর কী वार-बार दोहराकर उनके परिणामों को तुलना कर सवते हैं जौर इस प्रवार भूक की मात्रा को मिटा सवते हैं। परन्तु नागरिकशारुत् वा विद्वान्‌ ऐसी पद्धति वग॒प्रयोग नही कर रावता । इसके अनेदा कारण हैं। समाज की परिस्थितियाँ मनुष्य के हाथ में मही और इश वारण वह यह नहीं कह सकता कि जौ परिणाम उसके सामाजिक प्रयोगों से हुए है बढ कहाँ त्क उसके प्रयोग से पैदा हुए और वहाँ तक बह समाज की परिस्थितियों दा परिणाम है! छदाहरणायं हम यदि एक नये प्रगयर वा बगनूस बनाते हैं और उसके बनाने के वाद समाज में कुछ परिवर्तन होता है तौ हम यह्‌ नहीं वह सकते कि कहाँ तक बहु परिवर्तन उस कानन के कारण हुआ नौर्‌ कं तक ছু হালাল আটা अन्य परिस्थितियों का परिणाम हैं। (३) अपूर्ण यंत्र-भौतिकशास्त्र अपने प्रयोगों में सही “यत्रो जैसे वेमिक्ल बेलेंग (दैज्ञानिक तराजू) इत्यादि की सहायता छे सकता है परन्तु सामाजिक विज्ञानवेत्ता के पास ठेते नापने या तौलने के यत्र नहीं होति। इस प्रकार सामाजिक विज्ञानों में भौतिक विज्ञानों वी अपेक्षा अधिक गरूतियों वी सभावना होती है। (॥ 6 ४. नागरिकशास्त्र के अध्ययन की पद्धतियाँ (२ ९110०05 ०६ 176 §धपपुङु ° (1११५5) नागरिवशास्त्र के अध्ययन में हम निम्नलिखित पद्धतियों वा प्रयोग करते हूँ “-- (१) एंतिहासिक पद्धति (1115६07८० 21८० }--सामाजिकः जीवन के तथ्य ` वो समनने के लिए इतिहास हमें वी सहायता देता है । हमारी जितती भी सामाजिक सस्थाएँ अथवा सभाएँ हैं वह सब हमें भूतकाऊ से प्राप्त हुई हैं। भूतकाल में वह मनुष्य के जीवन की आवश्यकताओं को पूरा करने के हैनु जाने या अनजाने पैदा हुई थो। अत. उन सब का मूल्य समझने के लिए आवश्यक है कि हम यह पता छगादें कि बढ़ किन दशाओं में और किन आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए पैदा हुई और कहाँ পন




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now