मधुर स्वप्न | Madur Swapna

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Madur Swapna by राहुल सांकृत्यायन - Rahul Sankrityayan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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मृत्यु या जीवन ७. देवसभा के बीच इन्द्र कैसे बैठता होगा, उसका यहां अच्छी. तरंहू साक्षात्कार हो रहा था। भिन्न-भिन्न देशों से समागत जन अतप्त चक्षु से दस दुर्य को पान कर रह थे, वायुमंडल मे फलते कस्तूरी, केसर, गुखाब के मधुर मामोद का आघ्राण कर रहै थे । वह खुररमवाक्‌ के कथनानुसार जिहूवा पर पूरा अंकुश रखने ही मे सफल नहीं हुये थे, बल्कि अब उनकी झंपती पलकों और चलती पुतलियों के न देखें जाने पर मूर्ति होने का भी भ्रम ही सकता था । इसी समय पीछे द्वार की ओर कुछ हलचल दिखायी पड़ी । एक असाधारण सैनिक-वेशी भट जल्दी-जल्दी बचुर्कों ( बड़ों ) की पांती में पहुँच बरहर-निगान्‌-ख्वताय ( गार्ड-अफसर ) के पास पहुँच ` कान में कुछ बोला । उसकी मुखाकृति से चिन्ता और भय प्रकट हो रहा था । बरहर-तिगान्‌-ख्वताय्‌ ने तुरन्त अस्पाहपत्‌ ( महासेनापति ) के कान में कुछ कहा, फिर उसने वचुकं-फरमांदार को संकेत करके बतलाया । भूमि को सिर से स्पर्श करते पथाम्‌ से मुंह ढांके उसने सिंहासनासीन व्यक्ति से बात की । फिर एक से दूसरे मुंह होती बात सुनकर आगन्तुक भट द्वार की ओर जाता दिखलायी पड़ा । ऊंपरी पंक्ति के सभी मुखों पर चिन्ता की छाया का क्या कारण था ? शाहंशाही अर्ग ( दुर्ग ) के भीतर कितु अपादान के बाहर संगमर्मर की सीढ़ियों तक तस्पोत्‌ राजधानी के पचास हजार नरनारी आकर एकत्रित हुये थे । वह भूखे ओर नंगे धे । छलौ को उन्होंने अपनी आंखों के सामने मरते देखा था, अतएव मृत्यु उभके लिये कोई भय की चीज नहीं रह गयी भी, इसीलियें वे अर्ग॑ के महाद्वार के विकराल कपाठों और भयंकर द्वारपालों के रहते भी यहां तक आ पहुँचे । वह अपने शाहंशाह से सीधे अपनी बिपदा | कहना चाहते थे, छोटे-बड़े अधिकारियों से कहने का उन्होंने कोई फल नहीं देखा था । द्वारपालों और शाहो गारद के भटो को इन गुस्ताखों को.




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