प्राकृत भाषा | Prakart Bhasha

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Prakart Bhasha by वेचरदास पंडित - Vechardas Pandit

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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लः नन ( ५ ) 108०5४०8 ) शुरू हा पफ्रंस मेँ ही, पर फूलाफाला इन्नैलेंड ओर अमरीका में, ओर डेन्माक सें | साषाविज्ञान की खोज म इन अववा चीन पद्धतियों ने पुरानी तुलनात्मक और ऐतिहासिक दृष्टि को संवारने में काफी भाग बँटाया है। और आज समय आया हैं किईस अवीचीन दृष्टि के निकष से इण्डोयूरोपियल भाषाओं का इंविहांस परखा जाय । ০5 इन्डोयुरोपियत भाषाका खयाल ऐतिहासिक आर तुलनात्मक पद्धांत की ही देन हीटारईट, टोखासियिन, संसत, पुरानी फारसी, यक, लाटनः आई- रिश, गोधिक, लिथुआतनिअन, पुरानी सलाव, आसनिञअन, इन सब भाषाओं की तुलना से सालूस होता है. कि इन भाषाओंके व्याकरण, शब्दकोष इत्यादि से असाधारण सास्य है। ऐसा सास्य होना आकस्मिक तदी । इस सास्य से तो एक दी वात निष्पन्न हो सकती है कि किसी एक कालमें एक जगह जो एक भाषा विद्यमान थी उसके ये सव अनुगामी स्वरूप हैं । इस यूल भाषा में जो बोली भेद विद्यमान भ्रे--और हरेक भाषा में वोली सेद होना स्वामाविक ही है--वे काल- क्रम से स्वतंत्र भाषारूप मे परिणत हए, ओर उसके फलरवरूप हस ये अलग-अलग भाषायें पाते हैं। तो ये भाषायें प्रारंभ में वोलियाँ थीं पर इतनी विभिन्‍न नहीं कि परस्पर अथवोध न हो सके । ये জীবিত वाद सें स्वतंत्र भाषाओंके स्वरूप सें विकसित हुई हे किन्तु उनके उत्तर- कालीन विकासको अलग छोड़कर उनकी तुलना की जाय तो हम सूल इन्डोयुसोपियनं भाषा के स्वरूप का खयाल पा सकते हैं । और, इस अविद्यमान इन्डोयुरोपियनके स्वरूपका ख्याल पाने का यह एक ही रास्ता हैं। और इस इन्डोयुरोपियन का स्याल पाले के बाद ही हम गे इन चोलियों के अन्यान्य व्याकरण के स्वरूप एवं संबंध के प्रश्नों को हल कर सकते है । तुलनात्मक व्याकरण का यह एक सहस्त्व का सिद्धांत है कि एक सूलसापा की अपेन्षा से तब्जन्य भापाओं के व्याकरण के स्वरूप का चीर ष्वानेस्वल्पं को स्पष्ट करना | इसका उदाहरण भारत को भाषाओं से स्पष्ट कर सकते हैं। प्राचीन सारतीय आये सापा का स्वरूप वंदिक संस्कृत के रूप सें विद्यमान है, ओर मध्य भरतीय आयशभ्ापा का स्वरूप प्राचीन पाति और प्राकृत रूप में विद्यमान है.।




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