श्री पांचाध्ययी साहित्य | Shri Panchadhyayi Sahitya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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[१५] सरल टीकाए बनाई हैं। मूल ग्रन्थो के विरुद्ध उन्होने एक मी वातत नही लिखी है अत उनकी टीकां ग्रंथानुरूप पणं प्रमाण मानी जाती है उन्होने करीव १०० प्रथो की टीकाये रचने के साथ भक्तामर जतद्रयी मादि स्वतत्र सस्रत ग्रन्थ भी रचे हैं। भा० दि० जैन महासभा के वे स० महामत्री भी थे । परम पृज्य आचाये शान्तिसागर महाराज से उन्होने दूसरी प्रतिमा के त्रत लिये थे। मंनपुरी मे उनकी सर्राफे की दुकान थी उनके पुत्र पौत्र है। आचार्य सुधमंतागर महाराज श्री धर्मरत्तन प० लालारामजी शास्त्री से छोटे और मुभसे बडे भाई श्री प० नन्‍्दनलालणी शास्त्री थे, वे उच्च कोटि के विद्वान्‌ बने, वैद्य भी थे, वम्बई मे वैद्यक भी करते थे और वहाँ के सरस्वती भवन की सम्हाल भी करते थे । बम्बई के प्रसिद्ध जौहरी श्री सेठ घासीलालजी पुनमचदजी से भाई साहब प नन्दनलालजी शास्त्री ने कहा करि परम पूज्य आचाय॑ शान्तिसागरजी को दक्षिण से उत्तर मे विहार कराना श्रव्यन्त लाभदायक होगा अतः श्राप सघ भक्त बनकर समाज शिरोमणि वनो इसके लिये ३-४ लाख रुपये खचं करने का सकत्प कर लो! नौहरीजी ते भाई साहव की वात स्वीकार कर ली तव जौहरीजी ओौर पण्डित नन्दनलालजी दोनो ने दक्षिण जाकर भाचायं महाराज से प्राथंना की दोनो ने कहा कि महाराज उधर प्रान्त मे जनेऊ धारण करने की पृथा भी वहत कम रह गई है जल भी अद्ध वहुभाग मे ग्रहृण होने लगा है श्रत आपके विहार से सव सुघार होगा । तव महाराज ने कहा कि जौहरी घासीलालजी की भक्ति भो प्रशसनीय है परन्तु तुम्हारे सरीखा विद्टादू सघ मे नही रहेगा तव तक हम उत्तर मे विहार नही करेगे । इतना सुनते ही भाई साहव ने तुरन्त सप्तम प्रतिमा महाराज से ले ली। श्रपने पुत्र भौर हम सब भाइयो का मोह छोडकर सघ में वे साथ रहे। पीछे प० नन्‍्दनलालजी शास्त्री मुनि हुए फिर बहुत वर्षो पीछे भाचाय हुए । मुनि पद मे उत्तका नाम सुधम॑सागरजी रखा गया । परम पूज्य श्राचायं सुधर्मसागग्जी ने परम पूज्य धुनिराज कुन्थुसागरजी चन्द्रसागरजी, वीरसागरजी, नेमिसागरजी मादि सवो को सम्क्ृृत का अध्ययन कराया और सुधर्म ध्यान प्रदीप, सुधर्म श्रावकाचार जिन चतुरविशतिका श्रादि सस्कृत ग्रन्थो की रचना की, उन प्रथो की सरत हिन्दी टीका सरस्वती दिवाकर पण्डित लालारामजी यस्व्रीने की है। आचार्यं मुधर्मयागर महारान ने समाज का वहत कल्याण किया, साथ ही हमारी पदमावती पुरवाल जाति और हमारे धामिक घराने को अत्यन्त महत्वश्ाली चना दिया है। गृहस्थावस्था के उनके पुत्र आयुर्वेदाचार्य और नास्म प० जयकुमारजी है उनके भी पुत्र पौत्र है । मुकने छोटे भाई श्री चिरन्जीव बाबू क्षीनालजी जौहरी है जो बहत অনা স্তন सपरिवार रहते है, जवाहरात का व्यापार वरते है वहा के जौहरिया मे उनतहीं प्रतिष्ठा जोर सम्मान




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