ग्रेट ब्रिटेन का आर्थिक विकास | Gret Briten Ka Aarthik Vikas

Gret Briten Ka Aarthik Vikas by एन॰ एल॰ कुलश्रेष्ठ - N. L. Kulashreshth

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ডি सम्भव नहीं था । कुल मिलाकर उप्त समय इंगलैण्ड में पिछड़ी हुई अर्थ व्यवस्था थी जिसमे प्रगतिशीलता के लिए भुजायश कम थी। यह मानना पड़ेगा कि यह प्रणाली इंगर्ैण्ड भे चार दाताब्दियों से भी अधिक रही और उसमे केवल दोष हो थे, यह बात नहीं है। वस्तुतः उस समय की परिस्थितियाँ ही ऐसी थी कि सुधार कठित था, परन्तु रिकिज इतना प्रवल रहा कि यह प्रणाली अपनी उपयोगिता के काल से भी अधिक जोवित रही और उल्नति में बाधक बन गई । ग्राम संगठन की इस সাজীল সংোপী (2050০82155৩) জা ঘজন पतन्दहवी शताब्दी में स्पष्ट हृष्टियोचर होने लगा । उसके पत्तन के कई कारण थे, जिनमे मुख्य ये हैं--- (क) मुद्रा का प्रचलन, (ख) करबों और नगरो का विकास, (म) भूमि की घेरेबन्दी (००८॥०४पए८ गा०ए्ट्या८ाा), (घ) महामारियो श्रौर कालो-ृतयु (४।०८४-१९२५)१), तथा {ड} प्रामीण न्पायालयो कौ समाप्ति । १५बवी दाताब्दी मे उपयुक्त कारणो पर श्राधारिन इतने अधिक परिवर्तन हुए कि रूढ़ि श्लौर परम्परा पर भ्राघारिति मेनोप्यिल प्रणाली भ्रनतोगत्वा ভুত गई 1 मुद्रा के प्रचलन का मुख्य प्रभाव यह हुआ कि दास प्रया का अन्त हो गया 1 किसान श्रव ग्रामपत्ति को लगान मुद्रा द्वारा चुकाने लगे और ग्रामपति उनसे बेगार लेने के वजाय नकद मजदूरियाँ देने मे लाभ समभने लगा । ग्रामपति द्वारा झ्रारोपित मनमाने करो तथा दण्डों और भारों के विरुद्ध किसान-वर्ग मे एक बहुत वडा झान्दोलन छेडा जिसके आगे रूड़ियो को भुकना पडा । किसानो का यह ग्रान्दोलनल (9655590 छ०५०) सन्‌ १३८१ मे हुआ था। उनकी मुख्य मांग पद्‌ थो कि उन्हे सालाहिक झ्ौर विश्येप कार्य (৮০৩1১ 2০০ ४७००१ ४०४) से मुक्ति मिले और सेवाशो तथा लगान झोर मूल्यों की अ्रदायंगो बस्तुओ्रों के बजाय द्वव्य में निश्चित को जाये। इस परिवर्तेन को कम्यूठेशन ( ८०गामाप्रप्वधण्ण ) कहा गया। यह किसान झोर ग्रामपति दोनों के लिए लाभप्रद सिद्ध हुआआ परन्तु, कृषक दासो को सामाजिक स्थिति ऊँची हो जाने के कारण उन्हे ग्रषिकत सन्तोष हुआ १




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