प्रारम्भिक अवधी का अध्ययन | Prarambhik Avadhi Ka Adhyayan

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Prarambhik Avadhi Ka Adhyayan by विश्वनाथ त्रिपाठी - Vishvanath Tripathi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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मूमिका नवीन भारतीय आय भाषाएँ मूलत परस्पर सम्बद्ध हैं। इस्लोलिए बीम्प, भण्डारकर कयाग, हानली ज़्यूल ब्लाख, गियसन, चटर्जी इत्यादि विद्वानों के कार्यों स आय नवोन भारतीय आय भाषाओं के साथ-साथ मवयो कै अध्ययन का भा माग प्रशस्त हुआ है । फिर भो अवधो वे अध्ययन को हृष्टि स केवाग के नदी भाषा का व्याकरण तथा हानलो के “पूर्वी हिंदी का व्यक्रण का विशेष महर्व॑ है ।कलाग मे रामचरित मानस को भाषा पर विचार क्या धा गौर पूर्वी हिंदी के नाम से हानली न॑ भोजपुरी तथा अवधी के व्याकरण का विवेचन किया या। गियसन की यशस्विनी कृति “भारत का भाषा सर्वेषेण” के छठे खण्ड मँ पूर्वी हिली के नामस मवधो के विभिन्न रपरों का सग्रह है। इस खण्ड वी भूमिका में प्रियसन ने पूर्वी हिंदी का सम्यक परिचय दिया है । इसके पृत्र छत्तोम गटी बोली पर हो राल्ाव कायोप्राध्याय काम कर चुके थे । इसका श्रेंग्रज़ी अतु वाद वियसन ने ही १६२१ ई० में प्रकाशित करवाया 1 किन्तु अवधी पर सर्वाधिक महत्त्वपूण काय डा« वाबूराम सक्सेना ने किया । उनका प्रव घ “अवबी का विकास! सन्‌ १६३८ ई० में इंडियन प्रेस इलाहाबाट से प्रकाशित हुमा । इष प्रयर्मे अवधी की वैनानिक दृष्टि से विस्तृत विवेचना की पई। डॉ धारेद्र वर्मा के जनुखार दघ प्रय में पहले पहन एग आधुनिक भार तौय आयमभापा को ध्वनियों का प्रयोगात्मक নিহ্যা লী ভছিত উ বিরত तथा वणन क्या गया तथा दिनी कौ एक मुख्य बोली का प्रथम वैच्ानिक्त तथा विस्तृत वर्णन मितता है। डॉ० सवसेना ने आधुनिक अवधों के साथ-साथ प्रारम्भिक बवधी? का भो अध्ययन मुख्यय पदमावत, रामचरित मानस और नूर मुहम्मद को इद्धावती क आधार पर किया । प्रारम्मिक और आधुनिक अवग का विस्तृत विवेचन करने के साथ ही सल्‍थ उहोंने (अवधी घ्वनिया और व्या परणिक स्प की ब्युत्पत्ति वर भो विचार किया | अवघो पर डॉ० सत्तेता जुँधा काय फ्रि देखने में नहों आया ।




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