पश्चिमी हिमालय क्षेत्र के अतीत की झांकी | Pashchimi Himalaya Kshetr Ke Atit Ki Jhanki
श्रेणी : इतिहास / History
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
209
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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पठानकोट या मूरपुर-राज्य वी स्थिति को ठीक ही इगित करती है। कुलिन्दो वे सिकको
करी भाति भौदम्बरो वे मिक्यो पर भी प्राचीन वौद्ध धर्म चिन्ह पाये गये है। इन वर्गाका[र
ताम्बे के सिक्कों पर एक ओर हाथी, जगले से आवृत चैत्य, नीचे वी पन्ति से साप ओर
पाली भाषा में औदम्वर नाम है। सिक्क्रे के दुसरी ओर झकू के आकार का तीन मजिला
मन्दिर, स्वस्तिका चिन्ह और दाहिने कक्ष में स्तम्भासीन धर्म-चक्र है। परन्तु इनसे
पारवर्ती समयते सिक्को पर “महादेवस' शब्द उत्वीर्ण है। मन्दिर के चित्र के साथ तिशूल
भी है। कुछ सिक्को पर त्रिशूल, नान्दी, ध्वज या नान्दी पद-चिन्ह हैं! शासकों ক नाम
शिवदास, रुद्रदास, औदम्धरीस आदि है, ये सिक्के कदाचित् उस काल के हु जव शव धमं
और भागवत धर्म का प्रादुर्भाव हो चुका था | सम्भवत ये ई० सन् की पहली और दूसरी
सदी के है। कुछ विद्वानों वा मत है कि ओदम्वरों का राज्य शासन महादेव के नाम पर
चलता था जैसा आधुनिक कान मे द्रावनको र-कोचीन राज्य पद्मनाभ के नाम पर, मेवाड
एकलिंगी महादेव एवं टेहरी राज्य बदरीनाथ के नाम पर चलता था। ऐसा प्रतीत होता
है कि औदम्वरों के प्रारम्भिक वौद्ध धर्म का उत्तराधिकारी, शैव धर्म बना और अपने
अस्तित्व के अन्तिम समय, ईमा की चौयी-पाचवी सदी तक वे इसी धम फे पोपक रहे ।
पैसे कुलिन्दो की तरह ओऔदम्बरों का उल्लेख वहुत प्राचीन काल से चला आया। बौद्ध
जातक कथाओ मे गान्धार मौर औदम्वर के ऊनी वस्त्रा, 'शामूल्य' की भूरि प्रशसा की
गई है। कई आश्चर्य नही वि इस प्रदे कै उनी वस्त्रो की स्याति कौ परम्परा ढाई
हजार वर्ष तक जीवित रही। अभी कुछ समय पहले तक, विशेषत॒अठा रहवी-उन््मीसवी
सदी तक याश्मीर, अमृतसर और रामपुर-बुशहर के साथ नूरपुर पशमीने वी चादरो पे
लिये सारे भारतवर्ष व मध्य एशिया मे प्रसिद्ध था। पशम और पशमीने वी चादरों का
यह प्रसिद्ध व्यापार-केन्द्र था। इन वस्तुआ का हजारो रुपये का व्यापार यहा होता था।
भौदम्बर और कुलिन्द गणराज्य का पडौसी एक और प्रसिद्ध और शक्तिशाली
गणराज्य था । यह गणराज्य यौधेयो वा या। सम्भवत योधेय गणराज्य कुलिन्द और
औदम्वर गणराज्य का समकालीन हो। समुद्रगुप्त की इलाहाबाद प्रशस्ति में यौधेयों
वा नाम है। समुद्रगुप्त वे अश्वमेध यज्ञ के फ्लस्वरूप अन्य राजाओ और गणो या सघो
के साथ योधेयो ने भी गुप्त साम्राज्य की अधीतता स्वीकार की थी और अन्य गणराज्यो
के साथ ही उत्ती समय से इनवा भी हास हुआ और थोड़े समय में इतिहास से इनवा
अस्तित्व मिट गया ।
यौधेय गणराज्य वा क्षेत्र दिल्ली से लेकर दक्षिण-पूर्वी पजाव जिसमे कुछ पर्वतीय
भाग भी सम्मिलित था, फैला था। इनकी राजधानी कदाचित् रोहतक में थी। कुपाणों
के पतन के वाद यौधेयो का चरम उत्तर्प हुआ। यह समय ई० सन् वी तीसरो सदी था।
गणराज्य के मुखिया की 'महाराज' उपाधि धो, पर सिक्वो पर उसका नाम अवित नही
होता था। यौधेयो का प्रदेश मर और वहुधान्यव था। मद प्रदेश से आशय वर्तमान
पश्चिमी हरियाणा और बुछ भाग राजस्थान से हो। शेप प्रदेश वहुधान्यव था अल
प्रचुर घान और अन्य अन्न उत्सन्त करने वाला। बाहरी आज्रमणो वे समय वभी-कन्ी
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