अश्क 75 खंड 1 | Ashk 75 Khand 1
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
16 MB
कुल पष्ठ :
419
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)“और नीला तो अभी बच्ची है, ' ललिता की माँ बोली ।
मैंने तो यह भी सुना ललतो की माँ कि यह तो उस्तकी तीसरी शादी है।”
“तीसरी ! ” ललिता की माँ आश्चय प्रकट कर रही थी कि किसी ते नीचे
से आवाज़ दी---“ललतो की माँ, छतन््ने भरने जा रही हैं हम, आओ जल्दी 1
और ललिता की माँ अपनी साथिन को साथ लिये नीचे चली गयी ।
“तीसरी शादी ! “ये दो शब्द हथौड़े की निरन्तर चोटों की तरह चेतन
के मस्तिष्क को ठकीरने लगे और लेटा रहना उसके लिए कठिन हो गया । वह
फिर उठा ।
नीचे आंगन में मृहल्ले भर की स्त्रियां इकट्टो हौ रही थीं । रणवीर ओौर
उसकी पत्नी रस्सी, डोल और मिट्टी के छन्ने (कजे-कुल्ट्ड) लिये हुए छन्ने
भरने के लिए चलने को तैयार थी । चेतन के नीचे उतरते-उतरते स्त्रियां रणवीर
को आगे-आगे किये, नीला को ज्लुरमुट में लिये, छन््ते भरने की रस्म पूरी करने के
लिए चल दों। चेतन चुपचाप उनके पीछ हो लिया।
जब डोल भर कर ऊपर आता तो उसे फिर कुए में उलटतीं, रणवीर को
सतातीं, गातीं, हँसी-ठिठोली करतीं बस्ती के विभिन्न कुओं से छन््ने भरती हुई
स्त्रियाँ, दरवाज़े के बाहर उस धमंशाला की ओर को मुड़ीं जिसमें बारात उतरी
थी तो चेतन उनके साय नहीं गया, वह् सीधा चलता गया । धमंशाला के आगे की
दो-एक दुकानें और लकड़ी के टाल पीछे रह गये । चेतन चलता गया, यहाँ तक
किं वह् सेतो मे पहुच गया । तव वह् एके खेत कौ मंड पर हो लिया)
तृतीया का चाँद रात के इस पहले पहर ही में क्षितिज की गोद में सो गया
था। तारे अपनी टिमटिमाती हई ज्योत्स्नासे रात के बढ़ते हुए अंधकार को
'भरसक दूर रखने का प्रयास कर रहे थे। खेतों की मेंड्रों पर जहाँ-तहाँ उगे हुए
शीशम के घने पेड़ अपनी सत्ता की सारी भयावह॒ता के साथ प्रहरियों-से खड़े
थे। चारों ओर निस्तब्धता छायी हुई थी । केवल दायीं ओर पेड़ों के झूरमुट में
-रहट निरन्तर रिरिया रहा धा ओर दूर धर्मशाला में छन्ने भरती हई स्तर्या गीत
गा रही थीं। चेतन को लगा जैसे रहेट के रिरियाते संगीत में और उन स्त्रियों के
गानों में कोई अंतर नहीं, वे भी जैसे उस रहेंट ही की भाँति रिरिया रही थीं ।
उनकी रूह का कोई तार जसे उनके संगीत में न था, केवल प्रथा की पूर्ति के लिए
उनके हट हिल रहे थे ।
चेतन रहँट के पास ही पड़ हृए एक पुराने शीशम के तने पर बैठ गया । एक
कुत्ता ज़ोर-जोर से भूऊ उठा, कोई चमगादड़ पंख फटफटाता हुआ ऊपर से गुजर
गया ओर फिर सन्नाटाषछा गया। दूर धर्मशाला में स्त्रियाँ छन्ने भर और इस
बहाने नीला को दुल्हा के दर्शन कराके चली गयीं। लेकिन चेतन वहीं बैठा रहा
ओर रहँट उसी तरह री, री करता रहा ।
“जीजा जी, जीजा जी !
उपन्यास-अंश : 17
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