सोहन काव्य कथा मंजरी भाग 15 | Sohan Kvya Katha Manjari [ Part -15 ]
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
112
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)पति हितकारी :
सन्नारी
दोहा :--वधैमान भगवान का, गावो सब गुण गान ।
ऋद्धि वृद्धि हवे सदा, पावे जगमें मान।। १॥।
[ तजं--राधेश्याम रामायण |
राजगृह था -नगर श्रनुपम, श्रेणिक नप था हितकारी।
हेमवन्त . भूधर सम शोभा, पाता था वह गुणधारी।१॥
महाराणी .पटनारी चेलणा, नवे तत्वों की थी ज्ञाता)
रग रग में थी श्रद्वा जिनके वीर वचन ही मन भाता।२॥
, महाराजा थे बौद्ध मती और, क्षरिक वाद था मत जिनका ।
क्षण-क्षणा में होता परिवर्तेत, चेतन का और इस तन का ॥। ३ ॥
.. जब भी. चर्चा होती धर्म की, महाराणी भी रस लेती ।
वीर वचन है सत्य जगत में, साफ-साफ वह कह देती ॥| ४ ।।
दोहा :--अकाट्य वचनों को सुनी, होय निरुत्तर भूप ।
भ्रागे पौ सोच कर, हो जाता था चुप्प ॥ २॥।
इक दिन भूपति कहे देखलो, नगर निवासी सभी सुखी ।
यह प्रताप सब ही मेरा है, नहीं नजर में आय दुःखी ॥॥ ५॥।
महाराणीं कहै जीव शुभाशुभ, कयि श्राप अपने पाये ।
. नहीं किसी को कोई भी यहाँ, सुख दुःख देने को भ्राये।।६॥
महाराज कहे राजनीति ही, सव को साता देती है।
परजा मोद से समय निकाले, सुख की सांसे लेती है।। ७ ॥।
दुःखी नजर में नहीं श्रा रहा, देखा हो तो वतलावो ।
' सुखी करु गा उस मानव को, कहीं अगर तुम खुद पावो || ८॥
दोहा :--अश्रवण करी पति के वचन, सोचे यों पटनार ।
सुख दुःख भोगे निज किये, सुनो झ्रप भरतार ॥ ३ 1॥।
सुख दुःख देना नहीं हाथ मे, प्राणनाथ. मत বালালী |
जैसे-जैसे वाँधे कमे- -वह, भोगे यह मन में लावो ॥ ९ ॥।
२
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