सोहन काव्य कथा मंजरी भाग 15 | Sohan Kvya Katha Manjari [ Part -15 ]

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Sohan Kvya Katha Manjari [ Part -15 ] by सोहनलाल जी - Sohanlal Ji

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पति हितकारी : सन्नारी दोहा :--वधैमान भगवान का, गावो सब गुण गान । ऋद्धि वृद्धि हवे सदा, पावे जगमें मान।। १॥। [ तजं--राधेश्याम रामायण | राजगृह था -नगर श्रनुपम, श्रेणिक नप था हितकारी। हेमवन्त . भूधर सम शोभा, पाता था वह गुणधारी।१॥ महाराणी .पटनारी चेलणा, नवे तत्वों की थी ज्ञाता) रग रग में थी श्रद्वा जिनके वीर वचन ही मन भाता।२॥ , महाराजा थे बौद्ध मती और, क्षरिक वाद था मत जिनका । क्षण-क्षणा में होता परिवर्तेत, चेतन का और इस तन का ॥। ३ ॥ .. जब भी. चर्चा होती धर्म की, महाराणी भी रस लेती । वीर वचन है सत्य जगत में, साफ-साफ वह कह देती ॥| ४ ।। दोहा :--अकाट्य वचनों को सुनी, होय निरुत्तर भूप । भ्रागे पौ सोच कर, हो जाता था चुप्प ॥ २॥। इक दिन भूपति कहे देखलो, नगर निवासी सभी सुखी । यह प्रताप सब ही मेरा है, नहीं नजर में आय दुःखी ॥॥ ५॥। महाराणीं कहै जीव शुभाशुभ, कयि श्राप अपने पाये । . नहीं किसी को कोई भी यहाँ, सुख दुःख देने को भ्राये।।६॥ महाराज कहे राजनीति ही, सव को साता देती है। परजा मोद से समय निकाले, सुख की सांसे लेती है।। ७ ॥। दुःखी नजर में नहीं श्रा रहा, देखा हो तो वतलावो । ' सुखी करु गा उस मानव को, कहीं अगर तुम खुद पावो || ८॥ दोहा :--अश्रवण करी पति के वचन, सोचे यों पटनार । सुख दुःख भोगे निज किये, सुनो झ्रप भरतार ॥ ३ 1॥। सुख दुःख देना नहीं हाथ मे, प्राणनाथ. मत বালালী | जैसे-जैसे वाँधे कमे- -वह, भोगे यह मन में लावो ॥ ९ ॥। २




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