वीर पठावाली | Veer Pathavali
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
134
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)ऋंषभदैंथ मौर भरत | [ हैं?
उधर सार्वजनिक जीवनकी तरह दही म० ऋषभदेवजीका
गाहस्थ जीवन भी उन्नत था | उनकी दोनो रानियां विदुषी थीं ।
उनमें यशस्वत्ती देबी पहरानी थी । चेत्र कृष्ण ९ को इन्हींके गर्भसे
सम्राट् भरतका जन्म हुआ था | भरतके अतिरिक्त वृषभसेन आदि
सो पत्रो जीर जक्षी नामक पुत्नीको भी इर्न्नि जन्म दिया ।
ऋषमदेवकी दृसरी रानीका नाम सुनंदा था । इनके বাম
बाहुबलि नामक पुत्र ओर सुन्दरी नामकी पुत्री जन्मी थी । इस
प्रकार ऋषभदेवजीका दुदु भरा पूरा था । उनकी सारी संतान
योग्य और होनहार थीं | उन्होंने अपने प्रत्येक पुत्र ओर पुत्रीको
समुचित शिक्षित-दीक्षित बनाया था | सबसे पहले उन्होंने अपनी
ब्रह्मी मौर सुंदरी दोनो कन्याओंको ही लिखना, पढ़ना सिखाया ।
उन्हींके लिये उन्होंने लिपि ओर गणितका क्ायिष्कार किया । इसीं
कारण बतेमान नागरीका प्राचीन रूप “ ब्राह्मी लिपि ” के नामंसे
प्रसिद्ध हुआ । इसके अतिरिक्त ब्राह्मी ओर सुंदरीको उन्होने अन्य
विद्यायें ओर कलायें भी सिखाई थीं। संगीत ओर नीकिशाख्रकी शिक्षा
उन्हें खास तोरपर दी गई थीं । इस तरह ब्राप्मी ओर सुंदरीको भग-
वानने आदेश रमणिया बना दिया था । यद्यपि पिताके घरमे उन्हें
सव तहका आराम था ओर स्वत्व रूपसे उन्हें संफ्त्तिमें भी अंधि-
कार प्राप्त था; कितु दुनियांका नाच-रंग डनके लिये फूटी कोड़ी
बराबर था । वे आजन्म ब्रह्मनारिणी रहीं ओर सार्वजनिक हिलके
कार्ममिं ही अपना जीवन विता दिवा । महि महिमा ओर श्ी-
'शिक्षाका भहंत्व उनके व्यंक्तिलमें मूर्तिमान हो जा खड़ा हुआ ।
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