सड्घपति शोमजी शाह | Sadghapati Shomaji Shah

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Sadghapati Shomaji Shah by तेजमल बोथरा - Tejmal Bothara

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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है. 1 বন”, य्‌ ^+ ( ९४ ) --“ हमारे यहां तो सारे दिन्दुस्तानका लेन-देन ठहरा | इसलिये ढ़ टनेमं कुछ समय लगता ही है ओर बात कुछ भी नहीं है । अच्छा, जग बेठिये, मं अभी आता हूं ” यह्‌ कहते हुए मुनीम वहांसे उठ ओर सेठके पास ज्ञाकर उनसे सारा हाल कह सुनाया! मटको भी वड़ा अचम्भा हुमा, मनम मोचाकरि ক্ষ ভাজ रूपयेकी हण्डो खोटी हो, यह केसे हो सकता हे। “अच्छा; हण्डी नो देखा |!” यह कहकर सेठने हुण्डी हाथमें टद | “मं यह हुएडी देख रहा हूं, तुम ज्ञाओ फिरसे एक बार सावधानता पृजक ज्ाच करो |” सेठ कुछ प्रकाशकों ओर जा, মানত ब्र पटने खगौ | নকুল-ঘ হল मरः चाकर उठे ' শি भरकर ভিত হবডিলল লে, ছিব মন তা মন कहने लगे-वगक किसी खानदानों साथधर्म्मी भाईने विपत्तिमें গন অন हुण्डी लिखी है | हुण्डी लिखते समय मार्मिक दु:स्वके कारण अक्षरांपर अश्रु पड़ हुए हैं यह बात सट अच्छी नरह्‌ समञ्च गय ¦ सट अपनी विचक्षण बुद्धिम यह भी भलीभांति समञ्च गये कि हुण्डोका लिखनेवान्या कोई म्रा एवं आदरणीय व्यक्ति हुँ ओर किसी विपत्तिमं पड़ उसने ऐसा किया है। सेठ हृण्डाको ध्यानपूर्क देखे और आंसुआपर विचार कर हो रहें थे कि इननेमें मुनीम बापस लोट आये । क्या | कुछ पता छगा ? नहीं साहब । उत्तका तो अपने यहां कोई नामोनिशान भी नहीं ह्‌ |




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