ब्रज का रास रंगमंच | Brij Ka Raas Rangmanch

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Brij Ka Raas Rangmanch by रामनारायण अग्रवाल - Ramnarayan Agarwal

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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[१५ “जिस शामयाने मे हमे वैठाया गया था, वह १५० पुट लवा था, सामने दो फट उचा मच था, इसकी शिविकाये ओर स्तभ भली प्रकार चित्र वेष्टित थे, इसे सिहासन कहते है | इसके मध्य मे फूलडोल था । फूलडोल मे पुष्पहीरक रत्त ओर बहुमूल्य मणिया सुसज्जित थी । पुष्पगुच्छ, फूलमालाये, फूलडोल से “विहसते हुए बालगोविन्द को झुला रही थी 1” रासधारियो के कला प्रदर्शन के सबध मे उनका कथन है कि-+- “एक या दो नृत्य के उपरांत रासधारी जो सामने की ओर एक ऊचे मच 'पर बैठे थे और जिनके चारो ओर चोबदारो, चौरीवर्दारों तथा अन्य सेवको का समूह था, आगे-आगे उनमे जो तरुण किशोर था वह कन्हैया के रूप मे था। -कन्दैया, कृष्ण का ब्रज का ओर. वाललीला का नाम है। सबसे छोटा किशोर कन्दैया की प्रेयसी राधिका बेना था । रास वले (समूह नृत्य) के सामने हुमा, उसमे प्रेम-भावना ओर चाचत्य का प्रादुर्भाव था, किन्तु सव कुछ रोचक और दिव्य था) गोपियो के साथ गोकुल की वालाओ के साथ, ब्रजभाषा में (जो ब्रज प्रात मे बोली जाती है) गायन हुआ 1 प्रसिद्ध अग्रेज विदधान ग्राउसने जो मथुरा के जिलाधिकारी भी रहै थे अपने ग्रथ मधुरा ए डिस्ट्रिक्ट मेमोयर' मे (जो सन्‌ १८७४ से छपा था) रास का वर्णन किया है। वे लिखते है कि---- “रास एक अलिखित धामिक रूपक है, जिसमे कष्ण के जीवन की प्रमुख घटना अभिनीत होती है । यह्‌ मध्यकालीन योरूप के 'सिरेकिल प्लेज' के समान है । प्रत्येक रास एक घटा या उससे अधिक समय मे समाप्त होता है । प्रत्येक दुश्य अपने मौलिक रूप मे, मौलिक स्थल पर प्रदर्शित होता है । जिस दृश्य को बडे सौभाग्य -से मै देख सका वह विवाह का दृश्य था जो सकेत (बरसाने के निकट का एक स्थल ) मे प्रदर्शित हुआ था । रगमच के स्थान पर एक बाटिका थी, पृष्ठभूमि मे एक लाल पत्थर का मदिर था, ऊपर पूर्णिमा का चद्रमा था सामने से अनेक दीप-रश्मियो का प्रकाश पात्रों के मुख पर बिखर कर एक अपूर्व दीप्ति फैला रहा था । दृश्य अत्यत मनोहारी था और प्रेम की लीला से भी किसी प्रकार के अविचार का आभास नही था ।” उक्त विवरण से स्पष्ट होता है कि ग्राउस ने न्नज की वनयात्रा के अवसर पर संकेत वन मे राधा-कृष्ण के विवाह की लीला देखी थी जो आज भी यात्रा के समय इसी स्थल पर होती है । इस प्रकार रास हमारा एक ऐसा पारिवारिक मच है जिसे देश के बाहर भी पहचाना जाता रहा है और विदेशी दर्शक तक इसकी पावनता तथा कला से प्रभावित होते रहे है। रास के नृत्यो ने विदेशियो को यहा तक प्रभावित क्रिया ओौर वे स्वय कन्हैया को नचाने मे रुचि लेते रहे है । प्रसिद्ध भारतीय




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