छान्दोग्योपपनिषद | Chhandogyopanisad
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
19 MB
कुल पष्ठ :
484
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)(११).
| तरिविषुस्तस्मात्तनो मय ५ शृणोति श्रवणीयं चाक |
| णीये च पाप्मना हयतद् विद्धम् ॥ ५ ॥|
| अन्वय और पदाथ--( भ्रण, ह ) इसके अनन्तर ( भोभम् ) ।
[| श्रोत्नोपनक्तित ( उद्गीयम् ) प्रणवक्ञो ( उपासान्चाकिरे ) उपासना करते ।
हुए ( असुरा: ) असुर ( तत, ह ) उसको मी (पाप्पना ) पापल्ले ( वि- |
विवुः ) वेषतेुए ( तस्मत् ) विस्से ( तेन ) उस्नके द्वारा ( अवणीयम् ) |
| च ) सुनने योग्यकरो मी ( अश्रवणयम्, च ) न सुननेयोग्यक्षो मी |
| ( उमयम् ) दोनोको (श्रृणोति ) सुनता हे ( हि ) क्योकि ( एतत् ) |
॥ यह ( पाप्मना ) पापपते ( बिद्धम् ) विद्ध है॥५॥ ।
| (सायवाध )-तदनन्तर देवताआंले अ्रवणे निद्रिप के साथ
एकत्वटषिसि प्रणवका अश्रय करके उस इन्द्रिपकी |
| कल्पाणकारिणी सकत बृत्तिषोंको प्रकाशित करमेकी |
चेष्टा की, तब असुरोने इस भ्रषणेन्द्रिय को भी पापसे ]
विद्ध किपा अतएवं तबसे श्रययेद्रिय उस पापसे षिद्ध |
होकर सननेयोग्य विषयकी समान न सनलेयोग्य बिषय
| को भी सननेलगा ॥ ५॥ है
अथ ह॒ मन उदगीथमुपासांचकिरे तद्धा हाखुराः |
पाप्मना विविधुस्तस्मात्तेनोभय < संकल्पयते संक- |
स्पनीय॑ चासंकर्पनीयं च पाप्मना छैतादेद्धम॥६॥ |
अन्धय और पदार्थ-( भय, हु ) अनन्तर ( मनः ) मन ||
| उपलक्तित ( उद्बीयम् ) प्रणावक्ों ( उपास्ताचाक्ररे ) उपासना करतेहुए |
| ५ असुराः ) अमुर ( तत्, ह ) उप्तका भी ( पाप्मना ) पापसे ( विवि- ।
| घु. ) वेषते हुए ( तस्मात् ) নিম ( तेन ) उसके द्वारा ( सझल्यनीयम् |
| च ) ङ्कल् करेनयोग्यको ( भपङ्कल्प्भ्यम्, च ) सङ्कटप न करनयोग्य- |
का भी ( उभयम् ) दोनोको ( सङ्कट्यत ) भालाचमा करता (ই) |
| क्योकि ( एतत् ) यह ( पाप्मना ) पाकपे ( बिद्धभू ) विधाहुआ है ६ |
पाय 1] ` आाधा-टी का-सहित
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