छान्दोग्योपपनिषद | Chhandogyopanisad

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Chhandogyopanisad  by रामस्वरूप शर्मा - Ramswarup Sharma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(११). | तरिविषुस्तस्मात्तनो मय ५ शृणोति श्रवणीयं चाक | | णीये च पाप्मना हयतद्‌ विद्धम्‌ ॥ ५ ॥| | अन्वय और पदाथ--( भ्रण, ह ) इसके अनन्तर ( भोभम्‌ ) । [| श्रोत्नोपनक्तित ( उद्गीयम्‌ ) प्रणवक्ञो ( उपासान्चाकिरे ) उपासना करते । हुए ( असुरा: ) असुर ( तत, ह ) उसको मी (पाप्पना ) पापल्ले ( वि- | विवुः ) वेषतेुए ( तस्मत्‌ ) विस्से ( तेन ) उस्नके द्वारा ( अवणीयम्‌ ) | | च ) सुनने योग्यकरो मी ( अश्रवणयम्‌, च ) न सुननेयोग्यक्षो मी | | ( उमयम्‌ ) दोनोको (श्रृणोति ) सुनता हे ( हि ) क्योकि ( एतत्‌ ) | ॥ यह ( पाप्मना ) पापपते ( बिद्धम्‌ ) विद्ध है॥५॥ । | (सायवाध )-तदनन्तर देवताआंले अ्रवणे निद्रिप के साथ एकत्वटषिसि प्रणवका अश्रय करके उस इन्द्रिपकी | | कल्पाणकारिणी सकत बृत्तिषोंको प्रकाशित करमेकी | चेष्टा की, तब असुरोने इस भ्रषणेन्द्रिय को भी पापसे ] विद्ध किपा अतएवं तबसे श्रययेद्रिय उस पापसे षिद्ध | होकर सननेयोग्य विषयकी समान न सनलेयोग्य बिषय | को भी सननेलगा ॥ ५॥ है अथ ह॒ मन उदगीथमुपासांचकिरे तद्धा हाखुराः | पाप्मना विविधुस्तस्मात्तेनोभय < संकल्पयते संक- | स्पनीय॑ चासंकर्पनीयं च पाप्मना छैतादेद्धम॥६॥ | अन्धय और पदार्थ-( भय, हु ) अनन्तर ( मनः ) मन || | उपलक्तित ( उद्बीयम्‌ ) प्रणावक्ों ( उपास्ताचाक्ररे ) उपासना करतेहुए | | ५ असुराः ) अमुर ( तत्‌, ह ) उप्तका भी ( पाप्मना ) पापसे ( विवि- । | घु. ) वेषते हुए ( तस्मात्‌ ) নিম ( तेन ) उसके द्वारा ( सझल्यनीयम्‌ | | च ) ङ्कल् करेनयोग्यको ( भपङ्कल्प्भ्यम्‌, च ) सङ्कटप न करनयोग्य- | का भी ( उभयम्‌ ) दोनोको ( सङ्कट्यत ) भालाचमा करता (ই) | | क्योकि ( एतत्‌ ) यह ( पाप्मना ) पाकपे ( बिद्धभू ) विधाहुआ है ६ | पाय 1] ` आाधा-टी का-सहित




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