ऐसे ही समय में हमें जीना है | Aise Hi Samay Mein Humen Jeena Hai

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मेनेजर पाण्डेय - Manager Pandey

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रोबेर्तो फर्नाडीज रेतामार- Roberto Fernandez Retamar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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शासकवर्ग की वह आकांक्षा कभी मरी नहीं तो पूरी भी नहीं हुई । एक राष्ट्र के रूप मे क्यूबा के जन्म से ही उस पर अमेरिका की आँख लगी रही है। 1960 में ही अमेरिका ने क्‍यूबा से चीनी के आयात पर प्रतिबन्ध लगा दिया। उस वर्ष क्यूबा में चीनी का जितना उत्पादन-हुआ उसे सोवियत संघ ने खरीदा और बदले में तेल दिया, जिसे क्यूबा स्थित अमेरिकी तेल-शोधक कारखानों ने साफ करने से मना कर दिया | उन कारखानो ने क्यूबा की अदालतों के निर्णयों को भी नहीं माना। उसके बाद क्यूबा में राष्ट्रीयकरण की प्रक्रिया तेज हुई । तब सोवियत संघ से क्यूबा का सम्बन्ध बढ़ने लगा और अमेरिका से बिगड़ने लगा। कोई पूरी तरह सशयवादी ही कहेगा कि आरम्भ से ही क्‍यूबा की क्रात्ति का लक्ष्य शीतयुद्ध में सोवियत संघ की कठपुतली बनना था। एसा सशयवाद उस उत्तर-आधुनिकतावाद की उपज है जो यह मानता है कि अतीत का कोई अस्तित्व नहीं होता है, और यह भी कि वह वर्तमान ही सब कुछ है, जिसमे पराजय और इतिहास के काल्पनिक अंत की बातें सच हैं। यह ठीक है कि बीता हुआ वर्तमान ही अतीत है, पतु व्यतीत को जनि बिमा हय वर्तमान की कठिनाइयों को कैसे समझ सकते हैं। व्यक्तिगत रूप से मैं आरम्भ से ही यह मानता रहा हूँ कि क्यूबाई क्रान्ति को समाजवादी ही होना है। में किशोरावस्था से ही समाजवादी रहा हूँ। उस समय बर्नाड হাঁ ক विचारों से प्रभावित होकर समाजवाद की ओर आकर्षित हुआ था। मैं पहले ही कह चुका हूँ कि समाजवाद ही मानव समाज का भविष्य है अन्यथा उसका कोई भविष्य नहीं है। अगर क्यूबा की क्रान्ति को अमेरिका के कारण अनेक अकार की कठिनाइयों का सामना नहीं कला पड़ा होता तौ क्युबा मे समाजवाद का विकासि अधिक सुगम, सहज और मौलिक होता। गलतियाँ हमसे भी हुई हैं, लेकिन हमारे पास कोई और विकल्प न था शुरू से ही हमारी क्रान्ति को बदनाम और बर्बाद करने की हरसभव कोशिशें होती रही हैं। अब भी वह इरादा बदला नहीं है। अगर ऐसी कोशिशें नहीं होतीं तो हमारा इतिहास भिन्‍न और बेहतर होता। लेकिन हम अपनी क्रान्ति की उपलब्धियों पर गर्व करते हैं। मार्क्स ने कहा था कि हम अपना इतिहास खुद बनाते हैं परन्तु उस इतिहास की परिस्थितियां अतीत की देन होती हैं; हमारी बनाई हुई नहीं। हम आज जिस कठिन स्थिति में जी रहे हैं उसके लिए उत्तरदायी वे हैं जिन्होंने 1959 से ही हमारा जीना हराम कर रखा दै । डायना और बेवरली : आइए, अब हम आपके लेखन के बारे में कुछ बातें कों। फैनन के साथ आपको उत्तर ओपनिवेशिक विमर्शे का प्रवर्तक माना जाता है। क्‍या आप उत्तर औपनिवेशिक विमर्शं के बरे 16




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