भारतीय व्यापारियों का परिचय भाग - 2 | Bharatiy Vyapariyon Ka Parichay Bhag - 2

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Bharatiy Vyapariyon Ka Parichay Bhag - 2 by कृष्ण कुमार मिश्र - Krishna Kumar Mishra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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নিল पच्चन अव धीरे दूते जा र दँ किमी इनका मभी वहत प्राबल्य दै জী হুদাই দন पूनम भार्गमें भयदुर विप्रकी तरह द । उदाहरणार्थं समुद्र यात्रके विधान ही को छे हीजिए, इस विधानकी वजहसे हमलोगोंकी व्यापारिक गतिविधीमें जो भारी हस्त हो रहाहै। उसका অন্তুমাল भी नहीं छाया जा सकता | यदि हमारे जीवनमें यह भारी वन्धन नहीं होता तो आज कलकत्ता, बम्ब ओर करांची ही को तरह ढन्दन, पैरिस, न्यूयार्क, शंघाई आदि संसारके प्रसिद्ध बाजारोंमें भी हमलोगोंका कितना प्रभाव होता, यह कोन कह सकता है इसी प्रकाके और भी कितने भीषण समामिक वल्धन हमारे व्यापारिक जीवनको भयद्र रूपसे कमजोर घना रहे हैं, पर उन सबपर प्रकाश डालना इस छोटेसे स्थानमें असस्णव है। मतलब यह कि हमारे व्यापारिक विकासके लिये व्यापार साहित्यकी उन्नति फी अहुत भारी आवश्यकता है इसमे सन्देह नहीं। इसी अभावकी पूर्तिके लिए हमछोगेनि यह एक प्रयत्न किया है। हमें इसमें कितनी सफलता हुई है इसका निर्णय करना पाठकोंका काम दै हमारा नही) इसके भगे भी इस साहिलके सम्वन्धपें ओर भी बहुत छुछ कार्य्य करनेका हमछोगोका इरादा है, खासकर व्यापार सम्बन्धा एक दैनिक ओर एक मासिक पत्र प्रकाशित करनेका हमछोगोंका बहुत दिनोंसे विचार है। मगर हम इसी प्रतीक्षामें हैं कि यदि कोई हमले अधिक योग्य सन इस काय्येको प्रारम्भ करे तो उससे विशेष छाभ हो । पर यदि ऐसा न हुआ ओर समय हमारे अनुकूछ रहा तो निकट भविष्यमें ही ऐसे उ्योगको प्रारभ कनेकी चेष्टा की जायगी । अन्ते दस भूमिकाको समाप्न फलक पूर्व जिन छोगोंके सहयोग दानसे यह महान्‌ काथ्य सफलता पूरक सम्पस्न हुआ है उन लोगोके प्रति ऋतज्ञता प्रकाशित न करना वास्तवमें बढ़ी झतप्नताका काम होगा। सबसे प्रथम तो हम अपने उन सहायकोंके प्रति ऋतज्ञता प्रकाशित करते हैं जिन्होंने इस म्रन्थकी अनेक प्रतियोंकों खगीदुकर हमें उत्साहित किया है । इसके पश्चात्‌ धणिक प्रेसके मैनेजर मि° एच० पी० भैत्रको धन्यवाद्‌ दिये बिना भी हम नहीं रह सकते, जिनके मेंनेजमेण्दमें पुस्तक पहलेसे अधिक सुन्दर, अधिक शीघ्र, ओर अधिक शुद्धरुप में प्रकाशित हुईं है। इस वार भापके व्यवहारते हमें बहुत ही अधिक सल्तोष रहा। इस प्रत्थकें ब्हॉकमेकर म० सुरेशचन्द्रदासगुप्ताको धन्यवाद देना भी हम अपना क्त्य सममे हैं जिस्होंने बहुतही साधारण रेटमें अच्छे ओर सन्तोषजनक ब्लाक नियत समयपर बनाकर हमें दिये। इसके अतिरिक्त इस म्रस्थके संकलनमें सरकारी रिपोर्ट तथा विभिन्न विषयोके,कई मत्थोंसे सहायता छो गयी दे। उनके लेखकीके भी हम अत्यस्त आसारी है. साथही कलकत्तेकी स्थानीय कमर्शियल छाझ्री ओर इम्पीरियछ छायत्रेरीके प्रबन्धकॉंको भी ঘন্যনাহ दिये बिना नहीं रह सकते जिनके कारण हमें इस कार्यमें पर्याप्त सहायता मिलो है | अस्तमें हम अपने उदार पाठकोंका एक बार पुनः अभिनन्दन करते इष इस भूमिकाको समाप्त करे हैं। भानपुरा, निवेदुक-- ˆ १ अगस्त सन्‌ १६१६ ई |; अकालक कोशल वु पब्लिशिंग হাত ५




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