उत्तराध्ययनसूत्रम् | Uttradhyyamsutram

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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विपय-सची ] शगद्वेप के बन्‍्धनों को काट कर गोतमखामी का निर्वाण पद को प्राप्त करना ४३४ ग्यारहवा अध्ययन द्रव्य ओर भाव सयोग से रदित साधु के आचार घणेन करने की सूथकार की प्रतिश ४३६ अग्रहुश्चुत कै लत्तण ४३७ शिक्षा प्राप्त न होने के पाच करणो का वणेन ४३८ शिक्षा प्राप्ति के आठ कारणों का निरूपण अतरिनीत के चौदद लक्षर्णो फा वर्णन ४९० सुधिनीतके पन्द्रह लक्षणों का प्रतिपादन ४४८ गुरुकुल में रहकर विद्याध्ययन करने की शिक्षा ४४९ शह और दूध से यहुश्रुत की उपमा ४५० अश्व के साथ यहुश्वुत की तुलना ४५२ हाथी के साथ चहुशुत की समता ४०३ च्षभ ( बैल ) के साथ बहुश्रुत ४९० की समानता ४५४ पहुश्ुुत की सिंह के साथ तुस्ता ४५९ बहुश्रुत की वासुदेव के साथ सदशता পথ चहुश्रुत की चक्रचर्ती के साथ उपमा শত एहश्रुत की इन्द्र से सुलना এ चहृश्चुन की दिवाकर (सूर्य) से उपमा ४६० चह्ुश्ुत की चन्द्रमासे तुलना +> हिन्दीभापारीकासदितम्‌। {७ बहुश्ुत की घनाठ्य छोगों के धान्य के कोठें से उपमा ४६१ चहुश्रुत की जम्वू सुदर्शन वृक्ष से স্ততলা दम्‌ बहुश्रुत की सीता नदी से उपमा ४६३ 5? १ भेर पर्वत छः 9७9 धद्य #. ७ स्वयभूरमणसमुद्र ,, ४९५ समुद्र के समान गम्भीर वहुश्रुत को उत्तम गति की प्राप्त का चर्णन পথ मोक्षार्थी फो श्रुताध्ययन करने की शिक्षा ४६७ घारहवां अध्ययन हरिकेशी मुनि का परिचय ४७३ ्वपार कुल मे उत्पन्न, प्रधान गुणो को धारण फरने घाले, पॉच समितियों और तीन गुप्तियों से युक्त दर्रिकिशवल नामक मुनि के, भिक्षा के लिए ब्राह्मणों के यशपाट (यशशाला ) भे जने का वर्णन ४७७ तप से परिरोपित, धान्त (तुच्छ) उपकरण के धारण करने चाले उख हरिकेश मुनि को देखकर प्राह्मणों का छेंसना तथा निन्दारूप না ভাবা सवोधित करना ४८१ मुनि के अलुकम्पक यज्ञ का उस मुनि के शरीर में प्रवेश करना और ब्राह्मणो क प्रति मुनि की र से बोलना कि मे भिक्षा के लिए आया हैं, इत्यादि का वर्णन. ४८५




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