सामयिकी | Samayiki

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Samayiki by श्री सम्पूर्णानन्द - Shree Sampurnanada

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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९ २ बनाये रखना, विज्ञान, इतिहास, साहित्य और” अशैशासत्रका स्थान ठुल्सीकृत रामायणको दे देना और तत्काल ही पुलिस और सेनाको दयः देना जैसी बातें मानी जाती हों तो वह अव्यवहारय्य हैं | में यह सत्र इसलिए कट रहा हूं कि गान्धीवादका अभी वैसा शास्त्रीय स्पष्टीकरण नहीं हुआ है जैसा समाजवादका हुआ है । हमारे सामने गान्धीजी और उनके कुछ प्रमुख शिष्योंके रफुट० लेख और भाषण हैं | गान्पीजीने स्वयं कहा है कि वह जिस रामराज्यको देखना चाहते हैं उसमें राजा और रू: - दोनोंके लिए स्थान होगा, वह बड़े वनन्‍्त्रोंके पक्षमें नहीं हैं परन्तु यह उन्होंने स्पष्ट कह है कि उनकी कब्पनामें जो व्यवस्था है उ8में पूँ जीपति होंगे । अन्दर यह होगा कि वह अपनेको अपनी रम्पत्तिका स्वामी न मानकर संरक्षक समझेंगे । गान्वधीजीने बार वार कहा है कि विश्वविद्यालयोंयें दी जानेवाली शिक्षापर सार्वजनिक घन न व्यय किया जाय | गान्धीजीने इस बातपर दुःख प्रकट किया है कि कांग्रेस सरकारें भी पुराने साधनोंसे ही काम लेती रहीं । उन्होंने वर्तमान युद्धमें मी अहिंसात्मक प्रतिकारका परामर्श दिया है। इन बातोंकों देखते हुए हमारी आशड्डा साधार प्रतीत होती है । जिस प्रकार स्वयं गान्धीजी अपने मतकी व्याख्या करते हैं उसको देखकर यह कहना पड़ता है कि उनके उपदेशमें अंशतः बहुत ही ऊँचा, अगु- करणीय, आदर्श है : शोष या तो अव्यवहार्य्य है या हानिकर | काल्मवाहकी दिशाकी उल्टनेका प्रवल न तो आवश्यक हैन श्रेयस्कर है। मनुष्य जहाँतक पहुँचा है उधके आगे चढ़ना चाहिये ; उस प्रकृतिपर जहाँतक विजय पायी है. उससे अधिक विजय प्राप्त करनी चाहिये ; समाजकी ऐसी. व्यवस्था होनी चाहिये कि शोषक प्रदचिको अनुकूछ वातावरण न मिल सके ओर प्रत्येक व्यक्तिकों अर्थवाम और शिक्षाकी वह खुविधा प्राप्त हो. जिससे वह अपनी योग्यताका लोकसंग्रहार्थं




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