श्री प्रेमचन्द्र जी महाराज का विहार और प्रचार | Shree Premchandra Ji Maharaj Ka Vihar Aur Prachar

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Shree Premchandra Ji Maharaj Ka Vihar Aur Prachar by भवानीशंकर त्रिवेदी - Bhawanishankar Trivedi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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[विहार और प्रचार व जैसा सूना, वसा देखा । नहीं, नदीं सुनने से ग्रधिक देखा । सुनने से जो चित्र अधूरा था, देखने से वह्‌ पूरा वना 1“ उनके जीवन के सम्बन्ध में यह तथ्य है कि “श्रुत को दृष्ट वनाकर वह्‌ व्यवित टोटे में नहीं रह सकता ।” श्रद्धेय पजाव केसरी जेनधमं मूपण मन्त्री श्री प्रेमचनद्रजी महाराजके जीवन का बाहरी परिचय यह होगा-- “सुधड़ और सुन्दर शरीर । लम्बा कद भरवा शरीर, उज्ज्वल गोरा रंग । उत्तत और विशाल भाल । सिर पर दुग्धववल केशराशि, विरलरूप में सुशो- भित । नासिका सम्य में प्रवस्थित प्रायंत्व का प्रवल प्रमाण । अनुभवशीलता को अभिव्यक्त करती-- घनी भौहें चमचमाती आंखे उपनेत्रम से पार होकर श्रात्मिक तेज प्रकट करती हैं। भधुर मुस्कान से मरा वेहरा। योम प्र॑गद जैसी दृढ़ता और हाथों में हनुमान जैसी अ्रपरिमित शक्ति । जिस सिद्धान्त पर कदम रखा, फिर वहां से हटना मुश्किल । जिस काम को हाथों में उठा लिया, फिर उसे करके ही छोड़ा 1” यह है उस व्यूढोरस्क, महाबाहु पंजाबकेसरी श्रद्धेय जेनमूपणजी महाराज का चलचित्र जो श्राज मी पंजाव, मेवाड मारवाड मालवा, महाराष्ट्र, गुजरात ओर थली प्रान्त में पंचवर्षीय सुदीर्घ विहार यात्रा पूरी करके मारत की राजधानी देहली मे विराजित हैं जैसा सुन्दर आपका शरीोर है, उससे भी वढ़कर रारस और मधर श्रापका कोमल मानस है। उसमें प्रान्त भौर सम्प्रदाय के क्षद्र घेरे नहीं हैं। उसमें तो आपका सवगुणग्रहिता का ही वास भिलेगा। आपका मृदल सानस समाज की हीन दशा देखकर विचारमग्त होने लगता है । समाज के श्रम्यदय में आप को कितना रस हैं, कितनी लगन है और आप उसके कल्याण के लिए कितने अपर्नगात्र हु। इस बात का प्रमाण श्रापके सदपदेश द्वारा संस्थापित एवं प्रचारित वेजीटेरियन सोसाइटी हैं, जिसके माध्यम से आपने पंजाब के ग्राम- गम मे आर नगर-तगर में इसकी शाखाएं खोलकर मांस-भोजियों को निर्मास भोजी बताया । समाज की रक्षा के लिए आपने पंजाब में और गजरात में जो कांग किए हैं वे किसी से छुपे हुए तहीं हैं। सथारक के रूप में प्रापने सभी




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