वेदाञ्जलि | Vedanjali

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Vedanjali by राकेश रानी - Rakesh Rani

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्रारम्मिक वचन যার দি এস १. अनुकूल संयोग कानपुर का जेल ठीक गंगा के तट पर बा कई मा है। गत वषं (संवत्‌ १६०७) के दीतकाल के ६ महीने भर मुझे इसी, “कृष्ण मे रहने का सौभाग्य रहा है। सौभाग्य इसलिए कहता हूँ क्योकि यहाँ रहते हुए, जेल का स्वाभाविक कठोर जीवन विताते हुए और जैल के स्वाभाविक एकात का सेवन करते हुए मैं सदा यही अनुभव करता रहा कि मैं इस गगा-तट की तपोभूमि में तप करने आया हुआ हूं, परमात्मा ने मुझे यहाँ इसीलिए भेजा है। और इस अनुकूल स्थिति मे जब एक दिन मेरे पैरो मे महीने भर के लिये वेडियाँ देतेवाले मेरे कानपुर-जेल के खान वहादुर जेलर साहिव ने तथा सुपरिन्टेन्डन्ट 'करनल ओनील' साहिब ने मेरे हाथो मे लेखन-सामम्री भी दे दी, तव उन्होने मुझ पर जो कृपा की उसके लिये मैं उन दोनो का सदा कृतज्ञ रहेंगा। क्योकि इसी का परिणाम यह “वैदिक-विनरय पुस्तक है। ेसी एक प्रा्थना-पुस्तक, जिसमे वषं के प्रत्येकं दिन के लिये एक वैदिक प्रार्थना हो, लिखने का संकल्प तो चार-पाँच वषं सेथा। तवसे था, जवसे कि पजाव आयं प्रतिनिधि-सभा की अन्तरग सभा ने ऐसी एक पुस्तक निर्माण करने की आवश्यकता अनुभव की थी और उसकी रचना के लिये मुर्के कहा गया था। परन्तु मव कानपुर जेल में दो महीने त्तक यत्न करने के पश्चात्‌ जब मुझे जेल में कुछ लिख सकने की अनुमति मिली और मुझे लेखन-सामग्री दी गई तो, चूंकि तव तक सहारनयुर-जेल मे लिखनी प्रारम्भ की गई “अग्निहोत्र रहस्य” नामक पुस्तक के कागजात मुझे वापिस नही किये गये थे और न किये जाने की आणा थी, इसलिये तब मैंने अपने ऐसी प्रा्थना-पुस्तक लिखने के ही सकल्प को पूरा कृर डालने का निश्चय कर लिया। और इस “१६ नम्बर की वैरक' मे रहते हुए ही अगले चार महीनों मे इस वैदिक- विनय का आधे से अधिक भाग लिख भी डाला अर्थात्‌ वर्ष भर के सम्पूर्ण मन्तों का सग्रह कर लिया तथा लगभग ६ महीने तक के मन्त्रों का अर्थ-लेखन भी समाप्त करः लिया! २. तयारी पाठको को यह्‌ विदित होना ही चाहिये कि ये प्रार्थनायें आपके लेखक ने कितने यत्त और कितने प्रेम से तैयार की हैं । इसके लिये पहले तो अर्थों 13० रखते हुए और भ्र्थ-चितन करते हुए चारो वेदों का एक वार দাত किग्रा गया है ओर इस तरह ३६५ वेदमन्त्रो का उनके छन्दों वेदाञ्जलि श




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