विश्वयात्रा के संस्मरण | Vishvayatra Ke Sansmaran
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
11 MB
कुल पष्ठ :
462
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)कुछ हो रहा है, प्रशसनोय है छाइब्रेरी देखने के बाद मिशन के स्वामोजी के साय
रामकृष्ण अस्पताल भी देखा. अच्छा बडा भवन हैं, अस्पताल में १२२ क्यष् हं
बिना भेदसाव के चिकित्सा व शुभूपा को व्यवस्था है. देखा, रोगी प्राय” वर्मो ये
स्वामीजी ने अपनी कठिनाइया दताई कि पहले तो भारत से काफ़ो सहायता
तौ यौ, स्यानोव व्यवसायो जौर सरकार भी सर्च में मदद पहुचाती यी, पर अब वे
सुविधाए नहीं रहो ह॑ मुझे यह जान कर आइचयं हुआ कि स्वामीजो को वर्मा छोडने
के लिए कहा जा रहा हैं. में साचने लगा, सुदूर ঘন भूमि में अपनी मावहन और
स्वजनों फो छोड कर त्यागी और ब्रतों सायुसन्यात्तिया पर भी অব खतना क्या
कम्युनिस्ट प्रया है? समता ओर वधुत्व का बुलूद नारा रूगानें वाला कम्युनिज्म,
क्या इसौ प्रकार मानवता की सेरा करेगा? अस्पताल देख कर हम भारतोम
दूतावास पहूचे.. सायसाय वर्मा सरकार वे अफसर भी छूगें रहे हम चाहते हुए
भी आवश्यक जानकारी नहीं पा सक्ते
दोपहर कै भोतन ल कायत्म रलकत्ते के हमारे मित्र दावूलाल मुरारफा
के यह घा कुछ वर्षों पहले बडे उत्साह से इन्होंने यहा नाइलोन की एक बडी
फएंवटरौ लगाई यो अब उसे सरकार ने के छिया हैं मुरारकानों मंनेतर को
हेस्तियत से सरकारी निर्देशानुसार काम देखते हे. मुझे जानकारी मिलो कि
फंड्टरी की उत्पादन क्षमताघट गई है ओर मुनाफा भी कम हो गया है
भोजन पर रणून के प्रमुख ब्यवत्तायी भी आमयित ये भारत को तरह यहा
भी उद्योग व्यवसाय में राजस्थानी ही आगे बढें हुए ये. यहा खास बात देने
में आई कि कृषि को भी उद्योग के रूप में मारतोयो ने सगठित किया है. यहा
वितेष रप से राजस्थानियो के हाथ में लकडो और चावल की बडीबडी मिलें थों,
कपड़े और गल्ले का व्यवसाय था. पिछले बर्षों में आयाननिर्यात के क्षेत्र में भो
इन का अच्छा दसल हो मया घा_ आज हालत यह हूँ कि सब कुछ वमो सरकार
ने ले लिपा है. इन में से छुछ तो जेलों में हैं और जो बाहर ह थे आसक्ति हूँ
मुझे बताया गया कि इन के सामने सब से बडो समस्या हैं वि ये अगर स्वदेश
सोटें भी तो बहा करेंगे बारे इन को हजारों इमारतें हें, जिन में से बहुत सी
सरकार ने रे लो है. जो बची हे उन पर सरकार या नियत्रण हूँ, मुआवजा
मिलने का ता सवाल ही नहों उठता. सरकारों बानून है कि सपति बेंच नहीं
सक्ते न जाते बनता हैं और न छोडते
মল লহ किया कि यहा के बहुत से भारतीय इतनी दयनोप अवस्था में होने
पर भी बर्मो छोडना नहों चाहते. बर्मा उन को मातुर्भूमि बन गई है. भारत
उन्होंने कमी देखा तक महीं यंधानिक रुप से यहा के मागरिव भी यन चुके है
सापारणत राजस्थानी अपनो सस्झृति और परपरा नहीं छोडते, क्योकि इसके
प्रति इन्दं यञ मोट होता हूँ. सेडिन यहां देखा शि आय भारतोयों की तरह
दनर्मेमे कदर्यो ने यमो तौरतरोड अपना पिए हं, मापा मोर वेदाभूषः भो दन को
यहां को हैं, दोघार ने बर्मी औरतों से विदाह बर लिए ह्
इतने पर भो सरकार का विश्वास इन पर नहों है. मे हैरान था शि आखिर
बात क्या है? हागरुर भारोरेयों से इस डिदप का खूल कारण बया है? यह
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