अध्यात्म कल्पद्रुम सार | Adhyatam Kalpduram Saar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१२ किर भी इनके सम्बन्ध में प्राप अकिढों से स्थिति कुद ठीक वन जाती है । गुजरात आदि भारत के छुछ प्रान्तों का थोड़ा-बहुत जो इतिहास मिलता है वह जैन प्रेथों के आधार पर ही उपलब्ध হীবা ই। हेमचन्द्राचाय और उसके उत्तरवर्ती [बाद मे जाने वाले] जेन विद्वानों ने थोड़ा-बहुत लिखा है जो मानव कल्याण की उत्तमोत्तम उपयोगी सामभरी है। देमचन्द्राचार्य के पूर्ववर्ती आचार्यो' के सम्बन्ध में चतुर्वि शति प्रबंध आदि अंथों में इतिहास मिलता है और उसके बाद के आचार्या' के लिये आधार भूत पद्टाबलियाँ मिलती हैं। इस स्थिति को दृष्टिगतं रखते हुए यह सममा जाय कि इस महान्‌ मथ के क्वा का पर्याप्त इतिहास नहीं मिलता, परन्तु इधर-उधर दूर दूर खोज बीन के बाद जो कुछ मिला है उसका यहाँ उल्लेख किया जाता दे । इस महन्‌ ग्रंथ के कत्ती का नाम मुनि सुन्दरसूरि है। उनका जन्म विक्रम संवत्‌ १४३६ में (सन्‌ १३८० में) हुआ था। उनका जन्म क्रिस नगर में हुआ, उनके माता-पिवा कौन थे और वे किस जावि के थे इस सम्बन्ध में कोई जानकारी नदीं मिलती । उन्होंने सात वर्ष की आयु मे सम्वत्‌ १९४३ मे जैन धमे की दीक्षा ली थी । मुनि सुंदरसूरि महाराज ने किस युरु से दीक्षा ली इसकी भी कोई जानकारी नहीं मिलती। कफालान्तर में वे सोमसुन्दरसूरि के पद्ठ पर बिराजे इससे वे उनके शिप्य थे ऐसा साना जाता है, परन्तु सुनि सुन्द्रतुरि के दीज्ञा काल के समय सोमसुन्द्रसूरि की आयु तेरद्द वर्ष की थी इससे उनकी शिष्यता में सन्देह द्वोता है। मुनि सुन्दरसूरिजी ने 'गुवांवली' में देवचन्दसूरि के सम्बन्ध में जो उस समय तपगच्छ के मूल पट्ट पर थे और गच्छाधिपति थे, लगभग सचर श्लोको की रचना की, जिससे अच्ुमान किया जाता है कि वे मुनि सुन्दरसूरि के दीक्षा गुरु होंगे | देवचन्द्रसूरि के पट्ट पर सोमसुन्द्रसूरि बिराजे 1 इन्हें संचत्त्‌ १४५७० में “उपाध्याय” पद और संबत्‌ १४५७ में 'सूरि! पद प्रदान किया गया । वे गच्छाधिपति कब हुए इसकी भी जानकारी नहीं मिलवी। . मुनि सुन्दरसूरि को वाचक पदवी ( उपाध्याय पद्‌ ) विक्रम संवत्‌ १४६६ में दी गई और उस समय से वे युनि घंदर उपाध्याय के नास से प्रस्ध हुए। उस समय गच्छाधिपति सोमसुन्दरसूरि ये। देवराज




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