सैद्धान्तिक आर्थिक भूगोल | Saiddhantik Arthik Bhoogol

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Saiddhantik Arthik Bhoogol by हरकचन्द जैन - Harakchand Jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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[7] जाता है। कृषि भूमि को स्थिति, भूमि-उपयोग, कृपि-उपजों की उत्पत्ति भ्रादि को प्रभावित करने वाली परिस्थितियों का श्रध्ययन किया जाता है, इसमें मिट्टी की उवंरा शक्ति, सूर्याभिताप, फसलों को चोन व काटने का समय, श्रम, पूजी व सरकारी निर्णयों का प्रभाव आदि का अध्ययन किया जाता है, श्राथिक-भूगोल की इस शाखा का विकास संयुक्त राज्य अमेरिका, ग्र ट ब्रिटेन, कनांड़ा आदि देशों में प्रधिक हुभा है। भारत में भो इसका विकास हो रहा है। इस रष्टि से श्रसोगढ मुस्लिम विश्व विद्यालय ने भूमि उपयोग पर बहत कायं किया है । कलकत्ता, वाराणसी भ्रौर मद्रास के भूगोल विभाग भी इस प्रकार के श्रध्ययन कर रहे हैं ! भ्रन्य में फलल विशेष का अध्ययन, प्रादेशिक कृषि, सिंचाई, कृषि से सम्बंधित समस्‍यायें व नियोजन, खाद्यान्न पूत्ति व जनसंख्या आदि पर भी श्रध्ययन किए जा रहे हैं। इनके भ्रतिरिक्त कृपि-भूगोल में कृषि की उत्पति व विस्तार, विभिन्न प्रकार की कृषि की पद्धतियां, कृषि-विकास, कृषि-प्रादेशिकरण आदि का श्रध्ययन किया जाता है। (2) श्रौद्योगिक-भूगोल (10ए501रा&, 68007#एप्त९) श्रौद्योगिक भूगोल में उद्योग से सम्बन्धित विभिन्न क्रियाओं का अध्ययन किया जाता है यह विभिन्न उद्योगों से सम्बन्धि कच्चे माल, विशेषकर खनिज व ` शक्ति के साधनों के वितरण व उपयोग से सम्बंधित बातों का अ्रध्ययन रूरता है । उद्योगों की स्थिति निर्घारण, लघु स्तर के उद्योग, वृहद्ध पैमाने के उद्योग, श्रौद्योगिक विकास, भ्रौद्योगिक क्षेत्र, औद्योगिक केन्द्रों का अध्ययन, उद्योग विशेष का भ्रध्ययन, बने हुये श्रौद्योगिक माल के विक्रय से सम्बन्धित बातों का अ्रध्ययन किया जाता है। इसके द्वारा किसी क्षेत्र या देश विशेष के झद्योगिक संसाधनों के सर्वोत्तम उपयोग एवं अन्य सम्बन्धित समस्याओं के बारे में अध्ययन किया जाता है । इनके अतिरिक्त औद्योगिक माल की उत्पादन लागत, प्राप्त मूल्य, श्रौद्योगिक प्रदेश, नवीन तकनीकी विकास का उद्योगों व उनकी स्थिति पर प्रभाव, कच्चे माल में आनुपातिक कमी का प्रभाव आदि से सम्बन्धित बातों का अ्रध्ययन भी ओौद्योगिक भूगोल की विषय-वस्तु है (3) আাছিজ্জ-ুমীল (০0114510141, 98007৯73%) वारिज्य-भूगोल सानव द्वारा की जाने वाली सभी विनिमय की क्रियादों का अध्ययन है । इसके झ्रतिरिक्त परिवहन, परिवहन केन्द्रों की उत्पति, व्यापा- रिक केन्द्र, उनके विकास के अध्ययन से भी सम्बन्धित है। इन सभी क्रियाशओ्रों पर मौगोलिक वातावरण के पड़ने वाले प्रभावों का अध्ययन भी इसमें किया जाता है। वास्तव में झ्रधथिक भूगोल की इस शाखा का श्रपना स्वतन्त्र श्रस्तित्व नहीं है, वल्कि यह परिवहन-भूगोल, विपणन-भूगोल, झ्राय एवं व्यय भूगोल का सम्मिलित स्वरुप प्रदान करता है।




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