विवेकानंद साहित्य [जन्मशती संस्करण] [पंचम खंड] | Vivekanand Sahitya [Janmshati Sanskaran] [Khand 5]

Vivekanand Sahitya [Janmshati Sanskaran] [Khand 5] by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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विवेकानन्द साहित्य १२ के तत्त्वो के अन्तर्गत गौण नियमों का निरूपण किया गया है भौर उन्दीके द्वारा हमारे दैनिक जीवन के कार्य संचालित होते हैं। इन गौण विषयों को श्रुति के अन्तर्गत नहीं मान सकते; ये वास्तव में स्मृति के, पुराणों के अन्तगंत हैँ । इनके साथ पूर्वोक्त तत्त्वसमृह का कोई सम्पर्क नहीं है। स्वयं हमारे राष्ट्र के अन्दर भी ये सब वरावर परिवर्तित होते आये हैं। एक युग के लिए जो विघान है, वह दूसरे युग के लिए नहीं होता। इस युग के वाद फिर जब दूसरा युग आयेगा, तव इनको पुनः बदलना पड़ेगा। महामना ऋषिगण आविर्भूत होकर फिर देशकालोपयोगी नये नये आचार-विघानों का प्रवर्तन करेंगे। जीवात्मा, परमात्मा और ब्रह्माण्ड के इन समस्त अपूर्व, अनन्त, उदात्त और व्यापक धारणाओं में निहित जो महान्‌ तत्त्व हैं वे भारत में ही उत्पन्न हुए हैं। केवल भारत ही ऐसा देश है, जहाँ के लोगों ने अपने क़बीले के छोटे छोटे देवताओं के लिए यह कहकर लड़ाई नहीं की है कि मेरा ईश्वर सच्चा है; तुम्हारा झूठा, आओ, हम दोनों छड़कर इसका फ़ैसला कर लें।” छोटे छोटे देवताओं के लिए लड़कर फ़ैसला करने की बात केवल यहाँ के लोगों के मुंह से कभी सुनायी नहीं दी। हमारे यहाँ के ये महान्‌ तत्त्व मनुष्य की अनन्त प्रकृति पर प्रतिप्ठित होने के कारण हज़ारों वर्ष पहले के समान आज भी मानव जाति का कल्याण करने की शक्ति रखते हैं। और जब तक यह पृथ्वी मौजूद रहेगी, जितने दिनों तक कर्मवाद रहेगा, जब तक हम लोग व्यष्टि जीव के रूप में जत्म लेकर अपनी शक्ति द्वारा अपनी नियति का निर्माण करते रहेंगे, तव तक इतकी शक्ति इसी प्रकार विद्यमान रहेगी। सर्वोपरि, अव मैं यह बताना चाहता हूँ कि भारत की संसार को कौन सी देन होगी! यदि हम लोग विभिन्न जातियों के भीतर घमं कौ उत्पत्ति ओर विकास की प्रणाली का पर्येवेक्षण करें, तो हम सवत्र यही देखेंगे कि पहले हर एक उपजाति के भिन्न भिन्न देवता थे। इन जातियों में यदि परस्पर कोई विशेष सम्बन्ध रहता है तो ऐसे भिन्न भिन्न देवताओं का एक साधारण नाम भी होता है। उदाहरणार्थ, वेविलोनियन देवता को ही ले लो। जब वेविछोनियन लोग विभिन्न जातियों में विभवत हुए थे, तव उनके भिन्न भिन्न देवताओं का एक साधारण नाम था वाल , ठीक इसी प्रकार यहूदी जाति के विभिन्न देवताओं का साधारण नाम 'मोलोक' था। साथ ही तुम देखोगे कि कभी कभी इन विभिन्न जातियों में कोई जाति सबसे अधिक वलूशालिनी हो उठती थी और उस जाति के छोग अपने राजा के अन्य सव जातियों के राजा स्वीकृत होने की माँग करते हैं। इससे स्वभावतः यह होता था कि उस जाति के लोग अपने देवता को अन्यान्य जातियों के देवता के रूप में प्रति- _ চ্তিব करना भी चाहते ये 1 वेविलोनियन रोग कहते ये कि वा मेरोडकः महानतम




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