राष्ट्रपति के संस्मरण | Rashtrapati Ke Sansamaran

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Rashtrapati Ke Sansamaran by नीलम संजीव रेड्डी - Neelam Sanjeev Reddi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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नीलम सजीव रेद्दी 15 दयेन दिना पिसी तक वितक भौर कटुता पे मद्रास तया গাল সইঘ ধ' লিফলানী ओर जय सीमा क्षेत्रों को समस्या को हल बरने मे सफल हुए थे। हम दोनों द्वारा प्रस्तावित समझौता दोनों राज्यों की विधान सभाआ ने सवसम्मति से स्वीकार बर लिया था। कामराज और मैं अक्सर तिशमलाई में मिला वरते थ। दुर्भाग्यवश वुछ नेताओ को इन मुलावातो मे बारे मे गलतफहमी हो गई। हमारी न गूलाकातां का उद्देश्य राष्ट्रीय मुद्दा पर एवं दुसरे पे विचारों यो जानना-समझना होता था। मैंन सभा मे बताया वि विस प्रवार वामराज मे जीवन थे! अन्तिम तीन महीना में मैं उनसे कई बार मिला भौर वह्‌ देण फी स्थिति से विता दुखी ये ! उनयेः स्वग- वास के समय भी देश में 'आपातस्पिति' (इमजेन्सी) लगी हुई थी। मैंने बताया जि किस प्रवार नियेधाज्ञा वी अवहेलना करते हुए मैंने ग्रामराज ये! निधन या समाचार सुनकर अनन्तपुर मे शोवसभा आयोजित वी और विस प्रवार इस सभा वेद रामाचार किसी भी समाचार पत्र द्वारा प्रवाशित नहीं किया गया। उसी दिन मद्रास म मेरा दूसरा कायक्रम था, ऐसा जिसमे भाग लेते हुए मैंने मपने को सम्मानित भनुभव दिया । यह गाधी णी ये! प्रू्णावार विश्र ঘা अना- वरण परना था। मैंने सभा मे बताया कि किस प्रवार देश को एक दूसरे महात्मा गाधी की आवश्यवता है जो हमारे अ दर स्वतत्रता सप्राम ब' दिनो वी स्वापहीन त्याग की भावना वो पुनः प्रज्वलित पर सके ।




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