ऋग्वेद संहिता सप्तम अष्टक | Trigved Sanhita Vol 7

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Trigved Sanhita Vol 7 by रामगोविंद त्रिवेदी वेदांतशास्त्री - Ramgovind Trivedi Vedantshastri

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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५७ सटीक ऋण्वेद्‌-सेहिता [ 9 अ, & म०, १ अध्या०, २ अनु० ५४ सुत्त पवमान सोम दैश्रता । अवस्छार ऋषि । गायत्री छन्द्‌ | अध्य प्रलामनु य॒ तं शकर दुदुहे अहयः । पयः सहलसामृषिम्‌ ॥१॥ अयं सूयं इवोपहगयं सरांसि धावति । सत प्रत आ दिवभर्‌ ॥२॥ अयं तिद्वानि तिष्टति पुनानो भुत्रनोपरि । सोमो देवो न सूयः ३॥ परि णो देववीतये वाजां अषसि गोमतः । पुनान इन्दविन्द्रयुः ॥४। पी ५५ सूत्त पव्मान सोम देवता | झचवत्सार ऋषि | गायश्री छन्‍्द्‌ । यवयव॑ नो अन्धसा पुष्टंपुष्ट परिखत्र सोम विद्वा च सोभगा ॥१॥ इन्दो यथा तव स्तवा यथा ते जातमन्धसः । नि बर्हिषि प्रिये सदः ॥२॥ उत नो गोविददववित्‌ पवस्व सोमान्धसा । क्षुनमेभिरहभिः ॥३॥ १ क्रि रोग इन मोमङ़्े प्राचोन, प्रकाशमान, दीप्त, अक्तौम, कर्म-फरदाता और स्रवणशील रखको दृहते है ! २ यह सोम, सूयके सम्तान, सारे संनारकों देखते है' | यह तीस दिन-रातकी ओर जाते हैं यह स्व्रगंलें ले कर सातों नदियोंकों घेरे हुए है । ३ शोधित किये जाते हुए यह सोम, सूर्यदेवके समान, सारे भुवनोंके ऊपर रहते है' | ४ सोम, इन्द्राभिकाषी और शोधित तुम हमारे यज्षके लिये गोयुक्त भन्न चारो ओर गिराओ । ५०. १ साम, तुम हमारे लिये प्रचुर यव (जो), अन्नके साथ, दो और सारे सौमाग्यशाली घन भी दो | २ सोम, भन्‍्नरूप तुम्हारे स्तोन्र और प्रादुर्भाषकों हमने कदा ! भव तुम हमारे प्रसन्‍्नता- दायक कुशपर बेठो । १३ सोम, तुम हमारे गौ भौर अश्वके दाना हो । तुम अल्प दिने ही भन्नकरे साथ क्षसिति होभो ।




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