नयी तालीम वर्ष - २४ अंक - १ | Nayi Talim Varsh - 24 Ank - 1

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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लिफलता से विचलित मही हता! “विष्मुमञछनाम ” में ता भगवान्‌ के हजार माम-गुणा म कई स्वानो पर कमल को विशवण दिवा गया है -- पमो पद्मनिभेक्षण ' ओर ^ पद्मनाम अररविराक्ष पद्‌ मणं शरोरमूत्‌।* क््पिविनराकादहाल हमे जा हस्ननिषितं विप्मुमद्तनाम' प्ररा्िन हुआ है उसमे 'अरबिदाक्ष ' और पद्मगम वे अथ क/ इन प्रकार समझाया हूँ -- + जब हृदय कमलवत्‌ निर्मल हाता हूँ तभा साधक कमल-तथन वन सकता है । हमारे क्षिय य्ह आदश है। हमारी आँख भी कमल के समान लिमल हत। चादिय। निमल, यान सबका गुण दखनवाली आँख। যধ্যহৰ कृष्० ने भी घनुथर अजून से कहा था -- बह्मण्याधाय फर्माणि सग ध्यक्तवा करोति य। लिप्यते न सं पादेन पदूमपत्रभवाम्मता ॥ ( अध्याय ५ इलोक १०) अर्थात्‌ जा पुरुष सत्र कर्मों को परमात्मा म अपण करवे' और भसकित म। श्याग करके काय करता हूं वह जल मे कमल के पत्त की तरह पाप से लिप्त नही ह।ता। इसी लिए कमल के भारतीय सम्यत्रा का प्रतोक माता जाता है। चाह कितनी दर्षा हत। रह, किन्तु कमल के' पत्त ओर फूल सदा जल वे' ऊपर ही तैरते रहेग, कभी पानी म शूवग नही । मनुष्य क? भौ दुनिया की आधी यकारो मे से गुजरते हुए शान्त, प्रसन्‍त चत व सम्दर्शो ५० रहता चाहिये ? इसके बिना हमें समष्व-दशेन प्रप्त ^ ह्‌! सकेगा} क कै कै कै अकसर यह समस्षा जाता हं कि अनासक्ति का आदं निभाना केवल कषि, मूनियो व महाप्माभो के लिय सम्भवहू, साधारण नागरिको के लिय तो वड्‌ अप्राप्य दी माना जोयगा। किन्तु यह धारणा सही नहीं हें। मेयता यह्‌ पक्का दिश्षास हे कि जवं तक्‌ साधारणं मनुष्य मौ निसू भावना से अपना दिन प्रतिदिन का काम करना नहीं सोखेगा तब तक वह अपन उऊद्दश्यों को हासिल करन में कामयाब मे हो सरेगा। चाह वह वकोल हो या डाउ”र, सरकारी क्‍्मचारी हो या व्यापारी, विक्षक्‌ हो या विद्यार्थी, राजनीति हो या समाज-सवक्, उस अपना काय अलिप्त- बुत्ति स करना हो हगा। अयथा उसका शरोर, दिल और दिमाग अस्त-व्यवस्त আ ভিন্ন শিল্দ তু বিনা ল रहेगा। मेरे पूज्य पिद्रा श्री धमतारायणजी मुख अकसर बहा करत घ कि मोगिया व साधको कः दशन करन के लिय बना व आध्रमो में ज/न की जरूरत नही हूँ। एसे बदुत से गृहस्य, स्त्रो व युदय हं दिनिङा जीवन कमत सयस्त ७५ हे ष




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