चरित्र - चन्द्रिका भाग - 2 | Charitra - Chandrika Bhag - 2

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Charitra - Chandrika Bhag - 2 by श्रीयुत गोविन्द शास्त्री दुगवेकर - Shriyut Govind Shastri Dugavekar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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২৪৩ पचरिवि-खन्द्रिका। जे ज म ज बढ अजित कक त ज त णा = सि ज লী শী পপ পিপল 8 ৭ উপ পাট এপ পক শী ति ज ति ति ति किति উবার के के हुआ, बैसा सम्मान भी बहुत हुआ। देशभक्तोको दोनों अवस्थाओंका श्रजभव करना हयी पड़ता है । इस प्रकार नाथने देश और देवताके काययम श्रपना समस्त जीवन बिताकर सन्‌ १५६६ में फाल्युन बदी ६ रविचोरके दिन आनन्द्के साथ पुजपौत्रौंके सामने ६रिभजन करते हुए दिव्य लोव में प्रयाशु किया । यह षष्ठीका दिन महाराष्ट्रमे त्योहारोके समान माना जाता है। वर्याकि इसी दिन जनादेनखामीका जन्म, उन्है दन्तदशन, उनका नाथपर श्रनुग्रह एवम्‌ देदान्त श्रा ओर एकनाथ महाराजका देदावसान भी इसी दिन हुआ था। इस दिन २४ लाख मनुष्य पेठणमें एकजञ्र होते है । नाथके पूर्वजोंको ज़ागीरें मिली थीं, नाथको मिलीं और उनकी सन्तानको मी मिली । ये ज्ञागीरे प्रायः सजपूत श्रौर मराठा राजा- आकी दी हुई हैं। नाथके समयमे उनके चरण शनेक राजन्यगणके 07 ल्गमय मुकुटोंकी प्रभासे देदिप्यमान रहा करते थे। आज भी লক্ষী समाधिपर उक्त दिन सैकड़ों गाजा चँवर डुलांते हुए देख पड़ते हैं और समाधिके सम्मुख सब जाति, धर्म और समाजके लोग बन्धु-भावसे भोजन क्रतेहें। . ॥ पकनाथ महाराजकी काय-कुःशलताक्ा वणन उद्धव, चिद्धन रङ्गनाथ, शिवगम, रामवल्लभ, सिद्धचैतन्य, मुकुन्द, भुक्तेश्वर, नर - सोपन्त, तु:राम, निलोबा, श्रीश्वर, देवदास, श्रवधूत, पकेश्वर क्रिया है। जिसको महाराष्ट्रभाषा-भाषी पढ़ पढ़कर श्रानन्द्‌- सागरमे लन दोते इष कन्तेव्यपालनके लिये कटिबद्ध दो जाते हे । स्वार्थत्यागी गृहस्थ | मद्दात्माओं की इस समय भारतको आव- कता है। उनका अजुकरण करना ही हमारा पकमान कतंव्य है।




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