संसार में नरक | Sansaar Me Narak
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
37 MB
कुल पष्ठ :
161
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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हो गया। जब तुम इतनी रात को घर आओगे तो खाना
ठंडा नहीं क्या गर्म रहेगा ? सारी चीज मिद्दी हो गई है।
हे-हे ! यह बिरयानी तो बिलकुल ही पाला हो गई!
अब बताओ, इस में कया मजा भक्िलेगा ? मगर मेरे बकने से
क्या होगा। में हजार चाहूँ कि तुम्हें मज़ेदार खाना मिले,
तो मेरे चाहने से क्या होता हे ! तुम भला दफ्तर से आठ
बजे से पहले क्यों आने लगे ! ओर आज आएठ बजे आये हो,
कल दस बजे आओगे | जैसे आठ बजे वैसे दस बजे | आज
तो खेर ठंडा खाना भी मिल गया, कल जब दस बजे आओगे
तो यह ठंडा खाना भी न मिलेगा। भला चूहे-बिल्लियाँ उसे
क्यों छोड़ने लगीं | दस बजे रात तक कोन ताकता रहेगा ?
आदमा हूँ, आँख लग जाना इतनी रात गये कोई ताजुब की
बात नहीं हे ।
यह क्या है ? अरे कमबख्त शुबरातन, खुदा तेरा बुरा
करे, रास्ते हीं मे मेले कपड़ों की गठरी डाल दी ! यह कपड़े
भी कम्बख्त एक हफ्ते से मैले बंधे पड़ दै । तन के कपडेमी
चीकट हो गये हें । तमाम बदन से बू आती है। मगर तुम
दफ्तर से आठ बजे से पहले क्यों आओगे जो किसी ओर
धोबी की फिकर करो, ओर ये मैले कपड़े घुलने जायें।
कमबख्त दरजी के यहाँ जो कपड़े सिलने गये, वह आज
आते हैं न कल | उसकी दूकान पर दस चक्कर करो तो
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१ एक तरह का पुलाव । २ आश्चय । ३ शरीर |
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