बापू और नारी | Bapu Or Nari
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
154
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)और बापू :--व्यछद्वारिक नापू ] [३
| हमारी इच्छा की तो वात ही क्या १ बस, केवल माता-पिता
1) इच्छा और खर्च-वर्च की सुविधा देखी गई थी।” আাহন্নাহ আম
रमै के वजाय एक ही वारमे तीन विवाहों को निवटाने की ठानी
&थो।
जव तैयारियों शुरू हो गई', तथ भाइयो ने जाना कि विवाह होने-
बला दै। इन भाइयों को केवल यही उत्साह था कि अच्छे कपड़े
प्लेंगे, खाना मिलेगा, घाजा वज़ेगा, जैसा कि इस प्रकार के बित्राह
होता है। मदयत्माजी ने इस प्रसंग का वड़ा मार्मिक वर्णन
केया है। ऊपर गिनाई हुई बातों फे अतिरिक्त एक नई लड़की के
गाव हेंसी-खेल करने का बिचार भी था । पहले इसके अलाबा और
पि; पिचाप्तो नदीथा1 “व्िपय-भोग काने का भाव तो पांदे
पे उत्पन्न हुआ। यह किस प्रकार हुआ, सो मैं धता तो सकता हूँ
पस्न््ठु इसको जिक्लासा पाठक न रकसे |
अपने बाल-विवाह फा महात्माजी ने अच्छा वर्णन किया हैं--
“हमारा पाशिप्रदण हुआ। सम्रपदी में बरचधू साथ बेठे | दोनों ने
एक दूसरे फो कमार ( गेहूँ बी लप्सी-जेसा पदार्थ मिस विद्याह-विधि
समाम होने पर पर-बधू रखते हैं ) ग्गलाया, और तभी से हम दोनों
एक साथ रहने लगे। आओद, वह पहली रात! दो अबोध धातक-
चालिका बिना जाने, विना समके, संसारसागर में कूद पड़े ! भाभी
में सिखाया कि पहली रात यो জপ কযাকহা करना चादिये। यह
याद नहीं पड़दा कि मैंने धर्मपत्नी से यह पूष्ठा हो कि उन्हें क्मिने
मिसखाया था। अथ भी पूद्ठा जा सकता हैं; पर अद तो उसको
इच्छा तक नहों होरी। पाठ्झ इतना हाँ जान तें कि हम दोनों
शक दूसरे से डरते और शरमाते थे। में कया जानता था कि बातें
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