मजबूत दिल , तगड़े दिमाग | Majboot Dil Tagde Dimag

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Majboot Dil Tagde Dimag by पी० डी० टंडन - P. D. Tandon

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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७ लगेगा ।” गाड़ो चली ओर सब लोग ज़ोर से चिल्जाएं, “महात्मा गांधी को जय !” गांधी जी मानवों में महामानव थे । शक्ति के खोत थे । वहं मसीहा की तरह बोलते थे और महान सेनापति की तरह कार्य करते थे | वह जहां রত जाते वह स्थान मदिर वन जाता, वह जो कुछ लिख देतें वह धर्म संदेश यन जाता । उनके भेट, खोज के लिए यात्रा के समान होती थी । वह कोई बात दवाते या छित्ाते नही थे। मुझे ७ प्रगस्त १६४९२ में, उन्हें सुनने का वम्बई में मौका मिला था। मुझे उनका वह दृढ़ ओर शानदार रूप स्मरण है जिसने ब्रिटिश राज्य को कड़ी चुनौती दी थी । वह मृदुलता से बोले । कदाचित वह धीमे स्वर में बहुत ही सधे शब्द बोले । फिर भी उनकी दागी मे तोद संकल्प था जिसने समस्व देण को उत्तेजित तया सवर्प के लिए उत्प्रेरित कर दिया। वह बहुत देर तक बोले तया श्ोत/गय সব বত নত ভন प्रत्येक दन्द को पीते रहै । उन्होने अत में कहा, “मच तेयार है । परदा गिरता है। समय ञ्रा गया है। करो या मरो ।” पंडाल में “महृत्मा गाघी फी जय” को ध्वनि प्रौर प्रतिध्वनि गूजनें लगी । বালু, মান ক लिए, বানি के तूफानी सागर में छूदने के लिए सैपार हो गया । उन्होंने पतितो--विश्वेवतः प्रछूतों वे: लिए बहुत कुछ किया 1 सन्‌ १६३२ में जव ब्रिटिश सरकार हरिजनों को हिन्दू जाति से पृथक कर रही थी तथ उन्हींने यरवदा जेल में आमरण प्रनशन किया प्रौर स्व० रैमजे मेकडानरड को लिखा, “मेरी पुकार परमात्मा की गद्दी तक पहुंचेगी । में हिन्दू भ्रन्तरात्मा को द्वित करने झौर ब्रिटिय सरकार को प्रस्तरात्मा को जागृत करने बेः लिए असाधारण यत्न करूंगा ।7 साधौ जौ टतो के प्रति प्रथं मानुपिकर व्यवहार से बहुत दुसी ये 1 उनके लिए यह विचार ही घमहनीय था रि हरेजन के स्पर्शमात्र से हिन्दू प्रवितरता वा पनुभव करें। एक बार उन्होंते लिखा, “में जन्मजात घछ्टूत नही हूं परन्तु स्वेच्छा से गत ५० वर्यों से प्रदूत हूं 1”




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