धर्म प्रसंग में स्वामी शिवानन्द भाग I | Dharam-prashang Main Swami Shuwami Bhag-i

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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२ प्रम-पमंत में वानी বানর ध्रीवारणप्रों में सुस्दारी भक्ति, विश्याय और प्रेम दिन-यरवदिल भूव बढ़े। युम उना भर सूर अद्गगर हो जानो। दीक्षा के साम्बम्प में तो में तुछ भी नहीं जान11+-मंने টিন हो दीक्षा दी भी नहीं है। ठाकुर मे मेरे भीवर गुर-दुज्धि बिलदुक्त दी ही नहीं । भें उनका गेवक हूँ, उनका द्वास हूँ, उसकी सन्‍्लान हूँ। इसके अतिरिका, दीक्षा देने के सम्बन्ध में ठादुर के पास से मेंने अभी तक कोई बादेश भी नदी पाया हूं । में नायता हूँ ' रामइम्ग माम ही इस युग का मद्दामस्त्र हैँ। जो भक्तिपूर्त द्वदय से पतित- पावन युगावतार ठाढुर का নান जगा, उसके लिए भन्ति, मुक्ति सभी छुछ करामछकबत्‌ है। 'रामहृष्ण ' इस युग का गौरवान्बित महाद्मक्तिश्ञाली नाम है। जीप की सुक्ति के दिए रामकृष्ण नाम जपना ही वय्येप्ट हैं। इसकों छोड़ और किसी प्रकार की दीक्षा की आवश्यकता हूँ, यह्द तो में नहीं सोचता । जो कोई शरीर, मन और वाणो के द्वारा श्रीरामहुप्ण का आश्रय लेगा, उनका नाम जपेगा, वह मूक्त हो जायगा, इसमे तनिक भी सन्देहं नही। जो राम हए, जोषृप्य हए, वे ही इस युग में थीरामङृप्ण-खूप में जाविूत हए है -- जीव को मुक्ति देने के लिए। ” भकक्‍त-- “ठाकुर का नाम तो जितना हौ पाता ह, जपता हैं। उनके श्रीचरणों में प्रार्धना भी करता हूँ। वे युगावतार भगवान हैं, इस पर भी मेरा पूर्ण विश्वास हैं। आप उन्हीं के अन्तरंस पार्षद हैं, आपकी कृपा प्राप्त होने पर मैरा जीवत सार्यक हो जाता--यह मेरी दृढ़ घारणा हैं। ” महापुरुषजी --- / मेरी तो कृपा हैँ ही; नहीं वो भछा इतना कहता हीं क्यों ? खूब श्रा्ंना करता हूँ, तुम्हाय कल्याण 81.




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