आलोचना का मार्क्सवादी आधार | Alochana Ka Marxvadi Aadhar
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
310
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)इ दिद ह्र कि इत सादिक माव कौ स्थिति उमान की परिस्थितियों में ही
: हमारा श्राज़ का मायकोप अत्र तक के हमारे सामाजिक विकास का परिणाम
[| हमारे विचार, हमारे संस्कार, हमारी भावनाएँ सइसा ज़मीन फोड़कर
हीं निकल आदी, सब॒द्ी स्थिति समाज में होती है, विश्व की परिस्पितियों में होती
{| अ्रतः कॉडवेल जत्र सामूहिक भावो की बात करता है तो उसका अमिप्राय
सी भायकोप से होता दै जो प्रत्येक युग का उपजीव्य होता है; किसी युग का
माज जिन सहरि चलता दै }
यह स्पष्ट बात है कि यदि कोई साहित्यकार विशाल जनता के जीवन का
देन्रण करना चाहता है तो उसे संपूर्ण रूप में जनता के जीवन के साथ अपने को
शकाकार कर देना चाहिए; उसी दशा में साहित्यकार जनठा के सामूदिक मावो का
प्रयोचित परिपाक अपने में कर सकेया। कहने की आवश्यकता नहीं है कि जब
तक जनता के जीवन से साहित्यकार का समन्य दूर-दूर का, कोरी बौद्धिक सहानु-
भूति करेगा त त उसके साद्वित्य में जीवन का स्वर दबा-दबा-सा रहेगा (
वास्तविक जीवन से पास का परिचय द्वोने से ही साहित्य में जीवन का स्वर उभर-
कर झाता है | इसी तथ्य को दृष्टि में रखकर कॉडवेल प्रगतिशील साहित्यकारों को
एक प्रकार फी सलाद-सी देता है कि उन्हें कला के क्षेत्र में सवद्वारा-बर्ग का नेता
ঘননা चाहिए ] वास्तविक जीवन में स्वद्गारा-वर्ग के साथ जन्र उनका तादात्म्य
है, उभी उनकी का में भी स्वह्यत-वर्ग का जीवन पूरी सचाई के साथ अंकित
करने की क्षमता थ्रायेगी । उस वर्ग का अ्रमिशत्त पर इस जीवन अपने श्रात्म-
विश्वास और दृद संकल्प से पाठऊ अयवा भोठा को तमी प्रभावित कर सकेगा
सब्र सादिव्यकार ने उस जीवन का ऋंग बनकर उसे अ्रंक्रिद किया हो॥ अपनी
कथावस्तु करो श्रचछी तरद जान-समनकर ही कोई उसे पूरे उभार के साथ, पूरे
निखार के साथ चित्रिद कर सकता है, इससे भला किसी को श्रापत्ति पलों सकती
है! जिस जीवन को श्रातर वित्रित करने चले हैं, वह किन आध्थाओों, किन
मान्यताश्ों श्रौर विश्वार्सों, छिस चेतना और किन संस्कारों से सविमान श्रथत्रा जड़
है, उन्हें धुद्धि के माय्यम से ही नहीं भावना के, अनुभूति के माध्यम से मो पकड़े बिना
फोई साहित्यकार आगे बढ़ ही कैसे सकता हे ! समाज की इन सारी मान्यताओं,
विश्वा्ों एवं संस्कारों की समष्टि को हो कॉडवेल ने उस युग श्रथवा समाजविशेष
का सामूहिक भार! रह दे |
इस सम्बन्ध में एक विचारणीय बात और है | वह यद ङि कडेर ने सं
हायजगे के सावूदिक भार! की जो बाव कही है उससे क्या अमिग्रेत है; उसने
, १७ आलोचना का माक्सवादी आदर
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