ओंकार उपासना | Onkar Upasna

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Onkar Upasna by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( १६ ) विन वोले नही जाते, अतएव वे ग्धं शौर श्रघूरे हैं । अवर्ण का उच्चारण सव वर्णोंके उच्चारण मे'रमा हुआ है, यहा तक कि शठद লাল में अवर्ण की चिद्यमानता है, इसलिए शरवणं सव वर्णो मरौर सव शाब्दो मे व्यांपक वस्तु ही महान होती है। झ्रतएव--भ्वर्ण पूर्ण, व्यापक সী মন্ান্‌ ই। अध्यात्मबाद मे 'अ से श्रोम्‌ बनता हूं! जैसे व्णमालामे प्रवर्णपूर्ण वर्ण है, अन्य सारे वर्णो में व्यापक है, और श्रन्य सब वर्णों से महान है, ऐसे ही श्रोम स्वरूप में पूर्ण है। कसी भी पदार्थ की श्रपेक्षा नही रखता। अन्य सारे पदार्थ म्म्‌ के भ्राश्निन हैं । वर्णो मे भ्रवणेवत्‌ भरम्‌ सथ पदार्थो मे व्यापकं है सवसे महान्‌ ई! जो वस्तु पूरणं श्रौर महान्‌ हो वही भ्रानन्दमय हो सकती है, श्रतएव श्रोमू'श्रानन्द स्वरूप हे। पूर्णानन्‍्दमय ही परम भ्रिय स्वरूप हो सकता है, इसलिए भक्त लोग भगवान्‌ को परम प्रेम स्वरूप भी कहते हैं। ऊपर कहे “झोम्‌” के सारे व्याख्यान का साराश स्वल्प সী शास्प्रीय शब्दो मे कहा जाय, तो श्रोम का अर्थ सच्चिदानन्द श्रवा श्रस्ति, भान्ति, प्रिय स्वरूप परमेदवर है। श्रीम्‌ भगवान्‌ श्रनन्त जीवन, श्रनन्त ज्ञाने श्रीर्‌ परम प्रेम स्वरूप हूँ । का ৯ ০ ০ ओम निरीकार हे




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