रामचरित मानस में लोकवार्ता | Ramcharit Manas Me Lok Varta

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Ramcharit Manas Me Lok Varta by गुलाबराय - Gulabrai

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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~ मानि मे लोकवार्त संध्या के प्रथम विवरण प्रच्न में पनी नीति इम प्र्‌ धोपित को थी। क्षोक- वासां के अन्तर्गत वद् समस्त संस्कृति भा जाती ই जो 'जन' से सम्बन्ध रखती है चर जो शास्त्रीय धर्म छया इतिहाम में परिथित नहीं हो गई धीरो सदा अपने झाप वदती रही है 1 सम्य समाज मे दष सकि का प्रतिनिधि परस्पटा से घल्ले झाते हुए ऋगरिमार्नित विरवात्त तथा प्रधाएं काती हैं । असम्यों मै यह सण्टति उने जीवन का चग दनी होतो है । दन्दो एी शोध थीर न्दी का संग्रद्द लोकवा्त मे होता £ । रेल्ञर ने भी दसी धवरिषट के श्रभ्ययन पर जोर दिया | उनके धनुसार अवशिष्ट उन हष्यों के समूह का नाम है जो प्रगति, प्रथा भौर सम्मति से यने दो झौर जो अपने उपपन्ति स्थात [ भ्सभ्य अपस्था ] से अल कर समाज में प्रविष्ट हो गये हैं 18 भरत संदे मँ लोकवार्दां ॐ धन्तग॑त, “वदेच्चद्ी जातियों में प्रचलित श्रथवा अपेशाकृत, समुश्तत जातियों के चसस्क्ृत समुदायो मेँ थवरिष्ट विर्वा स, रीति र्वान्‌, कानि, गोत तथा काव भ्राती हैं। प्ति के चेतन तथा जड़ ज़गत के सम्बन्ध में मानव स्वभाव तथा मलजुष्य- कृत पदों के सम्पन्ध में, सूत-प्रेठों की दुनियाँ, तया वशीकरण, ताबीज, भाग्य शकुन, रोग तथा रुत्यु के सस्पस्ध में आदिम तथा झसम्य विश्वास” झाते हैं-- “धर्म गायाएँ, अवदान (1692011708), ल्ोक-कद्दानियाँ, साके (1081|8ध8) गीत, किम्बदन्त्रियाँ, पद्ेलियाँ तथा लोरियाँ भी इसके विषय (৮১৫ लोकवात्तों जन जीवन और सस्कृति के स्वाभाविक प्रवाद से सम्बन्धित है | शुद्दूजन की वास्द्रविक अभिव्यक्ति और उसका स्वरूप लोकवार्ततां में प्रतिष्ठित है। ऐसी अवस्था मे क्या यह सम्भव हो सकता है कि ल्ोकवार्ता का प्रभाव साहित्य और कला एर न पढे? यद्द प्रभाव स्वाभाविक है। इस प्रभाव को हुदयंगम करने के लिये ऐसे कुछ उदाइरण 'राप्चरित माप! से दे देना होगा, जो इन तर्खो की उपस्थिति के प्रमाण हैं। रामचच्दनी की बरात जा रही है, मुलसी लोक सस्कृति की योजना में लगे हैं-- म ड के प्रिमिटिव कल्चर, प्रथम,सस्करण, (१८७१) ए० ५-१५ | हे सत्वेद्ठ, ब्रज लोक साहित्य का अध्ययन, ছু ४। और दे० “बने की 'हेण्डघुक' आऑॉक फोकलोर |




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