भक्तराज केवट | Bhaktraj Kevat

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Bhaktraj Kevat by इन्दुभूषण जी महाराज - Indubhushan Ji Maharaj

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ५.) ৮ ५“ ही कर दें किन्तु लप्र तक आपझे ओ चरणों को न.योलुंगा तव तक है तुलसीदास के स्वामी, दे ऊपालु में आपको नाव पर चढ़ा कर नहीं ले जाने का | केबट के इस अटपटे किन्तु प्रेम से पे हुए चचन को सुन कर ,करुणानिवान श्रोरामजी, जानकीजी वथा लक्ष्मणज्ञी की ओर देंसकर दँस पड़े । पद कमल घोय चढ़ाय नाव--भाव कि चरणों को धोने के बाद फिए आपको भूमि पर चरण न रखने दूँगा क्योंकि গুলী নয चरण धरने मे पुनः घूलि लग जायगी अतः डठाऊर नाब पर सवार कराऊंगा | ~ पद कमल धोय का दूसरा मार फि यदं पर প্রীলীলাদীলী नि शर्म क चरणो की उपमा प्रथम तो कमल से दी यथा-< चरण-फमल रज्ञ कँद सव कदई। मानुप करनि मूरि कछू अदई॥ घुतः अपने पद्म से उपमा दी यथा--_, जो प्रभु अवमि पार गा चहहू । मोहि पट पद्य पासन ऋहहू॥ अन्त में आप पुनः कमज्ञ से उपमा देते ट, यवाः. पट ज्मल्‌ घोय चदाय नाव ~“ | जान यट कि केवट वदना है शापे कमल के ममान लाल चर्ण मन्वानो ইউ হব হক से पढ्मा अर्थात धेन दो मवे. अं र्द धकर पुनः कमत चना दंगा 1 (यद भाव लेको मानस मर्मझ सेठ श्री चल्लमदामजी द्ारा श्राप्त हुआ दे ) = __ _ न नाथ उतराई चदों--का भाव कि एक पेशा वाले शपते दशा वाले से मज्नदूरी नहीं लिया करवे वो मैं कैसे लूंगा, बयान




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