भक्तराज केवट | Bhaktraj Kevat
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
1 MB
कुल पष्ठ :
101
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( ५.)
৮ ५“
ही कर दें किन्तु लप्र तक आपझे ओ चरणों को न.योलुंगा तव
तक है तुलसीदास के स्वामी, दे ऊपालु में आपको नाव पर चढ़ा
कर नहीं ले जाने का | केबट के इस अटपटे किन्तु प्रेम से पे हुए
चचन को सुन कर ,करुणानिवान श्रोरामजी, जानकीजी वथा
लक्ष्मणज्ञी की ओर देंसकर दँस पड़े ।
पद कमल घोय चढ़ाय नाव--भाव कि चरणों को धोने के
बाद फिए आपको भूमि पर चरण न रखने दूँगा क्योंकि গুলী নয
चरण धरने मे पुनः घूलि लग जायगी अतः डठाऊर नाब पर
सवार कराऊंगा | ~
पद कमल धोय का दूसरा मार फि यदं पर প্রীলীলাদীলী
नि शर्म क चरणो की उपमा प्रथम तो कमल से दी यथा-<
चरण-फमल रज्ञ कँद सव कदई।
मानुप करनि मूरि कछू अदई॥
घुतः अपने पद्म से उपमा दी यथा--_,
जो प्रभु अवमि पार गा चहहू ।
मोहि पट पद्य पासन ऋहहू॥
अन्त में आप पुनः कमज्ञ से उपमा देते ट, यवाः.
पट ज्मल् घोय चदाय नाव ~“ |
जान यट कि केवट वदना है शापे कमल के ममान लाल चर्ण
मन्वानो ইউ হব হক से पढ्मा अर्थात धेन दो मवे. अं र्द
धकर पुनः कमत चना दंगा 1 (यद भाव लेको मानस मर्मझ
सेठ श्री चल्लमदामजी द्ारा श्राप्त हुआ दे ) = __
_ न नाथ उतराई चदों--का भाव कि एक पेशा वाले शपते
दशा वाले से मज्नदूरी नहीं लिया करवे वो मैं कैसे लूंगा, बयान
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