भजनसागर | Bhajansagar
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
177
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)१४ भेजनसागर,
जामा जरकसी लसे। कोटि काम छाजे ॥ ३ ॥ पुस्करदास
अतिआनंद् | निरखि रूप मगन संत ॥ घुघरघन घोर सौर।
चरन कवर वाजे ॥ ४ ॥
चटिवे वान राम्च॑दर । अवध देस आवत ॥ टेक ॥ रावन-
कुरु वधन कीन । देवन सुख पावत ॥ भक्तराज दिवो जाय ।
संतन मनमावत ॥ १ ॥ अघनसंघ सिआसहित । सकटको
सोहावत।॥ हनुमत कर चवर द्रत । हरित गुण गावत।॥२॥
सुनिके अवधेस देस । देखनको धावत ॥ जय जय दृसरथके
खा । सुमन ष्टि खवत॥ ३॥ हरखित सब मात सुदित।
कंठमें छगावत ॥ पुस्करदास आये शरण । ध्यान चरन
लावत ॥ ४ ॥
जीवन जगघ्राणअधार । जागो राम प्यारे ॥ टेकृ ॥ होत
भ्रात उदित भान सुर नर सुनि धरत ध्यान ॥ वेद् त्रम्हा
करत गान नामको तेहारे ॥ १॥ ख्ख चोरासी जीव जंत।
घट घट वास तेरो अंस॥ पुस्करद्ास चरन अधीन । तन मन
धन वारे ॥२॥ ,
प्रभाती-भ्ातसमे उठि मात जसोदा । कष्णहि कृष्ण
पुकारो ॥ टेक्॥ उठहु छाल भय भोर सोर जग | ले छे
नाम तेहारो ॥ पसु पंच्छी वन चरन जात हे | गठअनके
रखवारो ॥ १ ॥ उठे नाथ मम प्राननाथ पति । जसोदा
सुख अंचल झारो॥ पुस्करदास आस जहुवरके। ग्वार्स-
खा सब ठारो ॥ २॥ 5. ^ >
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