Bhajansagar by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१४ भेजनसागर, जामा जरकसी लसे। कोटि काम छाजे ॥ ३ ॥ पुस्करदास अतिआनंद्‌ | निरखि रूप मगन संत ॥ घुघरघन घोर सौर। चरन कवर वाजे ॥ ४ ॥ चटिवे वान राम्च॑दर । अवध देस आवत ॥ टेक ॥ रावन- कुरु वधन कीन । देवन सुख पावत ॥ भक्तराज दिवो जाय । संतन मनमावत ॥ १ ॥ अघनसंघ सिआसहित । सकटको सोहावत।॥ हनुमत कर चवर द्रत । हरित गुण गावत।॥२॥ सुनिके अवधेस देस । देखनको धावत ॥ जय जय दृसरथके खा । सुमन ष्टि खवत॥ ३॥ हरखित सब मात सुदित। कंठमें छगावत ॥ पुस्करदास आये शरण । ध्यान चरन लावत ॥ ४ ॥ जीवन जगघ्राणअधार । जागो राम प्यारे ॥ टेकृ ॥ होत भ्रात उदित भान सुर नर सुनि धरत ध्यान ॥ वेद्‌ त्रम्हा करत गान नामको तेहारे ॥ १॥ ख्ख चोरासी जीव जंत। घट घट वास तेरो अंस॥ पुस्करद्ास चरन अधीन । तन मन धन वारे ॥२॥ , प्रभाती-भ्ातसमे उठि मात जसोदा । कष्णहि कृष्ण पुकारो ॥ टेक्‌॥ उठहु छाल भय भोर सोर जग | ले छे नाम तेहारो ॥ पसु पंच्छी वन चरन जात हे | गठअनके रखवारो ॥ १ ॥ उठे नाथ मम प्राननाथ पति । जसोदा सुख अंचल झारो॥ पुस्करदास आस जहुवरके। ग्वार्स- खा सब ठारो ॥ २॥ 5. ^ >




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