भ्रम विध्वसनम् | Bhram Vidhwasanam
श्रेणी : दार्शनिक / Philosophical
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
14 MB
कुल पष्ठ :
522
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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भस्म श्रहं उतर गया । इसका मिलान इस प्रकार कीजिये किं ४७० वषं पर्यन्त
नन्दी बद्धंनका शाका ओर १५३० वपं पय्येन्त विक्रम सम्वत् एवं दोनोंकों मिलानेले
२००७ वष हो गण । उस समय मस्म श्रद उतर जानेसे ओर धूम केतुके वाल्या-
चस्थाके कारण वर कट न नेसे दी टका सु हता भ्रकर हो गया भौर शुद्ध
प्ररूपणा होने गी 1 तत्पश्चात् कमाचक्रम धूम केतुक वलकी वृद्धि दोनेसे शुद्ध प्ररु-
पणा शिथिङ हो गई 1 जच धूमकेतुका व क्षीण होने पर आया तव सम्वत् १८१७
में श्री मिक्षणणीका अवतार हुआ और शुद्ध प्रकपणाका पुनः श्रीगणेश हुआ | परन्तु
घूमकेतुके बिलकुल न उतरनेसे जिन मार्ग की विशेष द्धि नहीं हुईं। पश्चात् सम्वत्
१८५३ में घुमकेतु श्रदके उतर जानेके कारण श्रोखामी देमराजजी की दीक्षा होने फे
अनन्तर क्रमानुक्रम जिन मार्गकी वृद्धि होने छगी |
अस्तु आज कल जैसे करि साधुओं का सड्रठन और एक ही गुरु की
मज्ञा में सञ्चलन आदिक तेरापन्थ समाज में है स्पष्ट चक्ता अवश्य कद देंगे कि
वैसा अन्यत्र नहीं। आज कल पूज्य कालू गणी की छत्तछाया में रूते हुए छगभग
१०४ साधु और २४३ साध्वीया शुद्ध चारित्रुय पार रहे हैं | इस समाज का उद्दे श्य
वैष बढ़ाना नहीं किन्तु निष्फलडु साधुता का ही बढ़ाना है। यदि् साधु समाज के
समस्त आचार विचार चर्णन किये जाबे' तो एक इतनी ही बड़ी पुस्तक और वन
'जावेगी। हम पहिले भी लिख जाये हैं कि इस भत्य के सशोधन कार्य्य में आयु-
चेंदाचार्य पं० रघुनन्दनजी ने विशेष सहायता की है अतः उनकी कृतक्षता के रूप में
हम इस पुस्तक के छपाने में निल्ली व्यय करते हुए भी पुस्तकों को समस्त रक्खे
हुए मूल्य की आय को उनके लिये समर्पण करने हैं | यद्यपि “प्िक्षु जीवनी” लिखी
जा चुकी है तथापि वही चिहज्ञनों के अनुमोदनार्थ संस्कृत कविता में परिणत की
जाती है | परन्तु समस्त कथा का क्रम সন্ জী दृद्धि के भय से नहीं लिया जाता
है। किन्तु संक्षेपातिसंक्षिप भाव का द्वी आश्रय लेकर साहित्य का अनुशीलन किया
गया द | प्रेमिजन अवग॒ुणों को छोड़कर गुणों पर ध्यान दे
नीना काव्य रसाधारां भारतीन्ता मुपास्महे
्विपदोऽपि कविर्थस्याः पादाब्जे पट्पदायते ॥?॥
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