जपग्रन्थ प्रदीप | Japgarnth Pradeep
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
18 MB
कुल पष्ठ :
386
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)गंस्ग्रन्धप्रदीफा: . १४.
पदाथ सृकेपे निरणीतहुए् जथ ररनानकदेवजीके रः
का निरुणाएःकरेतेह॥ इसमे यह कारीतीयदिग
नानकईखरका अर्वतार पवेक् प्रगीए फिसिदेहये शव
सात्षात् $खरका खरुपहें जव खखारुप हुए: तब तिनेकी
गुरुकी अपेव्षाजही की किम अवियाइते आवरण |
होता नहीं।इसीवास्ते योगसत्रमें ईशरकों सूप गुरुतां
জিআই বসা सएपंपूरपामपिणुरुकालिनां
नुष्छेद्त्॥ योग० पद१।सुर २६॥ अथै॥
सो यहं परमेखरसृश्टिके आदिका लगे होनेवाले बंद्याआ
दिंकोंका गुरुहे क्योंफि कालकरके: अनवन्ठिन्त होनेसेः `
अंयीतकालकृतमेद्प रहितहोने से भाव यहहे. जो किसी
कालमें होवेःओर किसी कालमें न होवे सो कालकरके
भेद.संहित होता है औरपरेशरस्वेकाल में है इससे
कारुकृत भेदसे रहितहे इप्त वर्ष में हुआ और इतने বা
और अमुक वर्ष में न होगया जो इस प्रंकारका पद
होताहे सो कालकृत भेदयुक्व होताहै-प्रमात्मा सवेकार्ले
हे इस-वास्ते कालऊंत भेद रहितहे। प्रकरेएमें यह सिद्ध
हभ. जोकि शवर खययुरुहय वरहाभादिकफे के उपदेश
केटैःइधीवासते गर्मतमे {खरक वाहगुरुंनांमसे बोलिते
हैंः॥ बाहयन्तिकरियान्तजगहुतत्त्यादिका
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