आस्तिकवाद | Aastikvadh

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Aastikvadh by गंगाप्रसाद जी उपाध्याय - Gangaprasad ji Upadhyay

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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हितीय संस्करण की सूमिका मैंने প্সাদিকলাহা इसलिये लिखा था कि लोग ईश्वर-सम्बन्धी आता की ओर से सत्रथा उदासीम होते जा रहे हैं। और मुझे भव था फि कहीं मेरी पुस्तक घर के कोने में ही पड़ी न सडती रहे। परन्तु ऋई बडे बड़े सब्जना ने उसकी श्रादर पर्वं समालोचना फी ओर हिन्दी साहित्य सम्मेलन ने तो मई १९३१ के कलकत्ते के अधिवेशन मे मुम दरस पुप्तक पर मद्लाप्रसाठ पारितोपिक प्रदाच फरके अमुप्रहीत क्रिया । पुसक के अनुकूल इससे अधिक और क्या कहा जा सकता है। मुझे हप है ट्वितीय सस्करण की शीक ही आवश्यकता पड़ गई। मैने इसमे दो परिब्र्तन कर दिये हैं। पहले अगरेजी भाग पुस्तक का ही भाग था । अब बह फुदनोढ सें दे दिया गया है । इससे केवल हिन्दी पढ़ने बालों का ध्यान बढेया नहीं और जो मौलिक प्रमाण देखना चाहेंगे वह फुंटनोट में देख लेंगे। दूसरे कपिल के /ईश्वरा सिद्धे.” की समालोचना कर दी गई है | क्योंकि यह भी विवादास्पद विषय था। दयानिवास ॥ दलि १९३२ वि० |} गंगामसाद उपाध्याय २२९ माच १९३९ |




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