भूदान आरोहण | Bhudan Aarohan

Bhudan Aarohan by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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क सिहावलोकन १७ नही, हम किसी को दवायेगे नही । यही वात गीता ने कही নিন 'নাঘমূ ছল্বি ল हन्यतें --यह न मारता हैं और न मरता है। अभय की सबसे पहले आवश्यकता इसलिए हम ऐसा तरीका अख्तियार करना चाहते हे कि जिससे मसले हल हो जायें और अज्ाति या मनक्षोभ पैदा न हो, वृत्ति मे भय न हो। हमारे इतिहास-वेत्ताओं को यह वात माठल्म थी। इसलिए हमारे समाज-शास्त्र में एक शब्द था “अभय । लेकिन आज उसके बदले “लॉ ओअड ऑडेर (कानून ओर वन्दोवस्त) आया है। वे यह मानते हे कि लोग भयभीत हो कर ही क्यो न हो, पर (लें यड आंडर' मानते हं । इस तरह हमने व्यवस्या-देवी को परमदेवी माना ह । हम उसे कहते हे कि 'हे देवी, तू परमदेवी है । तू ही हमारा संरक्षण करती है। तू ही हमारा आधार है ।' इस देवी पर इतना विव्वास हो गया है कि नास्तिकं लोग भी इसे मानते हेँ। कम्युनिस्ट लोग कहते हे कि हम इश्वर को नही मानते! तो हम उनसे कहते है कि आप ईश्वर को तो नही मानते, लेकिन उसके वाप को मानते हँ । प्रवन्व- देवता को तो मानते हे । कु खोग तो कहते है किं व्यवस्था करते-करते कुछ लोगों को सफा करना होगा ! फिर इस तरह का सफाया करते-करते एसी व्यवस्या वनेगौ किं जिसमे सघपे ही मिट जायगा । सघपं तो उनका परम सत्य ह । जव हम पचते हं कि संघर्ष मिटेगा तो क्या होगा, तो वे कहते हे कि फिर तो २ `




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